Sunday, January 05, 2014

राजनीति में सही-ग़लत तय करने का पैमाना क्‍या हो?


--‍कविता कृष्‍णपल्‍लवी
सबसे ख़तरनाक कौन होता है? सामने खड़ा दुश्‍मन सबसे ख़तरनाक नहीं होता। आपकी पाँतों में आये घुसपैठिये सबसे ख़तरनाक होते हैं। 'ट्रोज़न हॉर्स' सबसे ख़तरनाक होते हैं । आप ही जैसा दिखने वाले, पर आपके आदर्शों के विपरीत आचरण करके दग़ा करने वाले और जनसमुदाय को दिग्‍भ्रमित करने वाले सबसे ख़तरनाक होते हैं । सामने खड़े दुश्‍मन को तो हम जानते देखते हैं । कब उससे बचना है, कब हमला करना है, क्‍या रणनीति बनानी है, आप सापेक्षत: सुगमता से तय कर सकते हैं । पर भितरघातियों-विश्‍वासघातियों-घुसपैठियों से लड़ना मुश्किल होता है।

कम्‍युनिस्‍ट क्रान्तिकारी कतारें इससमय बिखरी हुई हैं । ऐसे गतिरोध के समयों में स्‍वभावत: पतनशील  संस्‍कृति, विपथगामी-विजातीय विचार और गये-गुज़रे, अवसरवादी तत्‍व वाम पाँतों में पैठ जाते हैं, ख़ास तौर पर बौद्धिक दायरों के भीतर । आज यही माहौल है । क्रान्तिकारी आन्‍दोलन की सरगर्मियों से पीछे हटने वाले बहुत सारे लोग हैं, जो आज एन.जी.ओ. चला रहे हैं, पत्रकारिता या प्राध्‍यापकी के पेशे में हैं, सरकारी मुलाज़ि‍म हैं । विडम्‍बना यह है कि आज भी उन्‍होंने वामपंथी मुखौटे लगा रखे हैं, वामपंथ की, जनवादी अधिकारों की, सेक्‍यूलरिज्‍़म  आदि की बातें करते हैं, पर अपनी वर्तमान स्थिति को 'जस्‍टिफाई' करने और मध्‍यवर्गीय अहं को तुष्‍ट करने के लिए तरह-तरह की ऐसी बातें करते हैं, जो क्रान्तिकारी आन्‍दोलन के प्रति ही लोगों में संशय और अनास्‍था पैदा करती हैं । ऐसे लोग आज भी सक्रिय लोगों से प्रतिशोध के जुनून में कुत्‍सा-प्रचार, व्‍यक्तिगत तोहमतों और ''अन्‍दरूनी बातों'' का ''सनसनीखेज़ रहस्‍योदघाटन'' करते हुए ''सत्‍यकथा'' लिखने की पीत पत्रकारिता में लग जाते हैं । सोचने की बात है कि ऐसे लोगों का मक़सद क्‍या होता है! वे किनकी सेवा करते हैं? यदि उनका दावा कम्‍युनिस्‍ट आन्‍दोलन की सेवा करना है, तो यह  भी देखना होगा कि निजी ज़ि‍न्‍दगी में वे करते क्‍या हैं!

किसी भी व्‍यक्ति के लिए सही-ग़लत चुनने का पैमाना क्‍या होना चाहिए? पहला, किसी व्‍यक्ति, ग्रुप या संगठन की राजनीतिक लाइन क्‍या है, विचारधारात्‍मक-राजनीतिक अवस्थिति क्‍या है! दूसरा, उक्‍त व्‍यक्ति, ग्रुप या संगठन अपनी राजनीतिक लाइन को अमल में उतारता है या नहीं, जनता के बीच काम करता है या नहीं! इनके अतिरिक्‍त कोई तीसरा पैमाना हो ही नहीं सकता । कुत्‍सा-प्रचार की अपनी एक राजनीति होती है, जिसके बारे में लेनिन ने लिखा है । ख्रुश्‍चोवी संशोधनवाद के विरुद्ध 'महान बहस' के दौरान चीन की कम्‍युनिस्‍ट पार्टी ने स्‍पष्‍ट कहा था कि गाली-गलौज और अफवाहबाज़ी का सहारा वे लेते हैं जिनकी राजनीति ग़लत होती है।

आज की परिस्थितियाँ बड़े पैमाने पर युवाओं को प्र‍ेरित कर रही हैं कि वे राजनीतिक सरगर्मियों में उतरें और विभिन्‍न ग्रुपों-संगठनों की लाइन और अमल को देखकर, उनकी बातें सुन कर किसी के साथ खड़ा होने का फैसला लें । लेकिन कॉफ़ी हाउसी-फेसबुकी-ब्‍लॉगबहादुर रणछोड़ ''वामपंथियों'', पीत पत्रकारों, एन.जी.ओ.-पंथियों और कैरियरवादी निठल्‍ले बुद्धिजीवियों के विभिन्‍न ''पवित्र गठबन्‍धन'' तरह-तरह से संशय और अविश्‍वास का माहौल बनाकर, युवाओं को दुनियादारी की नसीहत देकर उन्‍हें निरुत्‍साहित करके प्रतिक्रान्ति की वफ़ादारी के साथ सेवा कर रहे हैं। 

2 comments:

  1. लेख अच्छा लगा,लेकिन सक्रियता के प्रती मार्ग भिन्नता का इतना कटू अस्वीकार समझ मे नही आता. व्यक्तीयो मे सत्प्रवृत्ती व दुष्प्रवृत्ती सभी विचारधारा मे हमेशा रेहेगी.

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  2. पूँजी के विरुद्ध मिहनतकस वर्ग के महान संघर्ष में सारे साथी अंत तक नहीं चलते, कुछ बीच में ही पूँजी के दबाव के चलते या अपनी निम्न माध्यम वर्गीय चेतना के चलते घुटने टेक देते है. ऐसे में वे समूचे कमुनिस्ट आन्दोलन के बारे में नाकाम और व्यर्थ का संशय और अविश्‍वास का माहौल बनाने की कोशिस करने के सिवाय कुछ कर सकने में असमर्थ होते है इस लिए और पतन के दलदल में फंसते जाते है. ऐसे लोग उस अभागे की तरह होते है जिसका सपना- इस जुल्मी दुनिया को बदलने का सपना- मर गया होता है. इनके इस पतन पर हम अफसोश ही कर सकते है.

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