सत्ता
उदय प्रकाश
जो करेगा लगातार अपराध का विरोध
अपराधी सिद्ध कर दिया जायेगा
जो सोना चाहेगा वर्षों के बाद सिर्फ़ एक बार थक कर
उसे जगाये रखा जायेगा भविष्य भर
जो अपने रोग के लिए खोज़ने निकलेगा दवाई की दूकान
उसे लगा दी जायेगी किसी और रोग की सुई
जो चाहेगा हंसना बहुत सारे दुखों के बीच
उसके जीवन में भर दिये जायेंगे आंसू और आह
जो मांगेगा दुआ,
दिया जायेगा उसे शाप
सबसे सभ्य शब्दों को मिलेगी
सबसे असभ्य गालियां
जो करना चाहेगा प्यार
दी जायेंगी उसे नींद की गोलियां
जो बोलेगा सच
अफ़वाहों से घेर दिया जायेगा
जो होगा सबसे कमज़ोर और वध्य
बना दिया जायेगा संदिग्ध और डरावना
जो देखना चाहेगा काल का सारा प्रपंच
उसकी आंखें छीन ली जायेंगी
हुनरमंदों के हाथ
काट देंगी मशीनें
जो चाहेगा स्वतंत्रता
दिया जायेगा उसे आजीवन कारावास !
एक दिन लगेगा हर किसी को
नहीं है कोई अपना, कहीं आसपास !
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एक उत्तरआधुनिक अरण्य-रोदन
(उदय प्रकाश की 'सत्ता' कविता का निष्कर्ष एक कविता के रूप में)
-कविता कृष्णपल्लवी
जिसने भी किया अपराध का विरोध
जिसने भी करना चाहा प्यार
जिसने देखने चाहे काल के सारे प्रपंच
जिसने बोलना चाहा सच
जिसने चाही स्वतंत्रता और सबके लिए सुख
वह रहा हमेशा ही अकेला,
उसी की छीन ली गयी आँखें,
उसी को मिला आजीवन कारावास।
न्याय, सत्य और मानवता का हर मसीहा
अंतत: रह जाता है अकेला
विचार उसे अकेला कर देता है
जिसे जनता कहते हैं वह है एक अंधी भीड़
क्रान्तियों के सभी महाख्यान मिथक थे जो ध्वस्त हो गये
मुक्ति भाषा का एक खेल है
जीवन स्वयं एक रूपक मात्र है अज्ञात रहस्यों का,
इतिहास अतीत का महज एक पाठ है
अत: मित्र जनो!
यदि कुछ बचा है तो अकेलापन और शाश्वत संशय
और अछोर करुणा की गुहार
और कुछ कविताएँ और फेसबुक-चर्चाएँ
और कुछ पुरस्कार
और कुछ विदेश यात्राएँ और कुछ घरेलू सुविधाएँ
और कुछ पारिवारिक निश्चिंतताएँ
स्वप्न में कुछ देवदूतों से मुलाक़ात
और जीवन में ईश्वर के प्रतिनिधि
दुर्दान्त रौद्र राग के साधक योगी से
प्राप्त सम्मान!
मार्के की बात। सटीक और धारदार विश्लेषण।
ReplyDeleteबिलकुल सही जवाब। हिन्दी में इधर उत्तरआधुनिक हो जाने की आकांक्षा कई लेखकों में कुलबुलाती देखी गई है। नई ख्याति पाए कवियों में भी। कहीं स्वरों की बहुलता की गुहार तो कहीं महानाख्यानों में तानाशाह की खोज के छूंछे दावे। धिक्कार है।
ReplyDeleteबिलकुल सही जवाब। हिन्दी में इधर उत्तरआधुनिक हो जाने की आकांक्षा कई लेखकों में कुलबुलाती देखी गई है। नई ख्याति पाए कवियों में भी। कहीं स्वरों की बहुलता की गुहार तो कहीं महानाख्यानों में तानाशाह की खोज के छूंछे दावे। धिक्कार है।
ReplyDeleteक्या बात है।वाह।
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