आज निराशा घेर रही है
पाकर मुझे अकेले।
सोचा, कितने स्वप्न पले हैं
कितने पले झमेले।
पर जिनने सपने कभी न पाले
कितने पर्वत ठेले?
रामझरोखे बैठे-बैठे
देख रहे हैं मेले।
साहस हो जिसमें अटूट
वह खेल युद्ध का खेले।
हार-जीत के आते रहते
हैं रेले पर रेले ।
जो लोगों के बीच रहे
संग-संग सब कुछ ही झेले।
जीवन जमकर जिया उन्होंने
बाकी रहे अधेले।
-कविता कृष्णपल्लवी
jeevan ki sacchai ko batati ek khoobsoorat gaatha. :)
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