गुणवत्ता की दुहाई देते शिक्षा को बिकाऊ माल बनाते जाने की प्रक्रिया लगातार ज़ारी है। निजी प्राथमिक स्कूलों से लेकर निजी विश्वविद्यालयों तक शिक्षा में भी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप स्कीम लागू की जा रही है।
आपकी जितनी ख़रीदने की औकात है, उसी स्तर और गुणवत्ता की शिक्षा आप ख़रीद सकते हैं।
लोकतंत्र (जनवाद ) का यह बुनियादी वायदा है कि सरकार जनता की बुनियादी ज़रूरतें पूरा करेगी। भोजन, वस्त्र, आवास, स्वास्थ्य और शिक्षा बुनियादी ज़रूरतें हैं। सरकार इन जि़म्मेदारियों से जब खुले तौर मुकर चुकी है, जब रोज़गार देने के बजाय बढ़ती बेरोज़गारी के सामने वह पूरी तरह से हाथ खड़े कर चुकी है, तो फिर लोकतंत्र का असली चेहरा क्या नंगा नहीं हो चुका है? फिर हम इस सरकार को टैक्स क्यों दें? क्या नेताओं-अफसरों की विलासिता और घोटालों के लिए? क्या पूंजीपतियों की चाकरी बजाने के लिए? हर पांच साल में वोट क्यों दें? -- नागनाथों की जगह सांपनाथों को 'थैलीशाहों की मैनेजिंग कमेटी' (सरकार) के रूप में काम करने का मौका देने के लिए और 'राष्ट्रीय बहसबाजी के अड्डे' (संसद) में सोने, हंगामा करने और कमीशनखोरी कर के गुण्डों-लफंगों के सरदारों को दोनों हाथों से धन बटोरने का मौका देने के लिए?
सच्ची शिक्षा वह है जो इन नंगी सच्चाइयों से हमें परिचित कराए। यह शिक्षा दुनिया की क्रांतियों के इतिहास और क्रांतिकारी विचारों का अध्ययन करके हमें खुद हासिल करनी होगी। यह शिक्षा हमें आम जनता के जीवन और संघर्षों से जुड़कर हासिल करनी होगी। विश्वविद्यालय-कॉलेज हमें डिग्रियां देंगे, जीवन की सच्ची शिक्षा नहीं।
शिक्षा के मछली बाज़ार कुछ सहृदय-संवेदनशील शिक्षक हो सकते हैं, लेकिन शिक्षा का जो पूरा ढांचा है, वह हमें इसी अन्यायपूर्ण सामाजिक ढांचे में जीने और इसी का पुर्जा बनाने का काम करता है। वह हमें गुलामों की फौज में शामिल होने का प्रशिक्षण देता है, हमारा मानसिक अनुकूलन करता है।
सत्ताधारी वर्गों को और इस व्यवस्था को नेता, अफसर, क्लर्क, दलाल, मजदूर, नौकर --- इन सबकी जरूरत है। पूंजीवादी शिक्षा की मशीनरी इंसानों को अलग-अलग सांचों में ढालकर ये जरूरतें पूरी करती है। किसका बेटा किस सांचे में ढाला जाएगा, यह उसकी सामाजिक-आर्थिक हैसियत से तय होता है।
यह शिक्षा हमें दुनिया को जानना-समझना और सत्य का संधान करना नहीं सिखाती। यह हमारे भीतर आलोच्नात्मक विवेक, तार्किकता और वैज्ञानिक दृष्टि नहीं पैदा करती। यह हमें समाज के अन्याय और उत्पीड़नपूर्ण संबंधों को स्वीकारना सिखाती है। यह हमें बताती है कि यह दुनिया जैसी है, उसे स्वीकार करो, इसे बदलने की कोशिश मत करो। यह हमें केवल अपने बारे में सोचने और सामने वाले को लंगड़ी मारकर तथा गिरे हुए को रौंदकर आगे बढ़ जाने की नसीहत देती है। यह पूंजी के निर्देश पर चलती है, प्रभुत्वशील लोगों के प्रभुत्व को मजबूत बनाती है और हमारी सोच और व्यवहार को इस तरह अनुकूलित और निर्देशित करती है कि यह व्यवस्था जैसे चल रही है वैसी ही चलती रहे। यह लोगों को यकीन दिलाती है कि यह व्यवस्था चाहे जैसी भी हो इसका कोई बेहतर विकल्प है ही नहीं, इसलिए जैसे सबकुछ चल रहा है, वैसे ही चलते रहने देना चाहिए।
जीवन की सच्ची शिक्षा का एक लक्ष्य यह भी है कि वह इस शिक्षा प्रणाली की वास्तविकता के बारे में लोगों को शिक्षित करे।
जीवन की सच्ची शिक्षा की पाठशाला कॉलेजों-विश्वविद्यालयों की अट्टालिकाओं के बाहर दुनिया की तमाम भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उत्पादन-कर्म में लगे उन मेहनतकशों की झुग्गी-झोपड़ियों में है, जो नारकीय गुलामी का जीवन बिताते हैं। नौजवान साथियों, क्या तुम उस पाठशाला में दाखिला लेने के लिए तैयार हो?
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