Monday, February 18, 2019

देश फिर एक ख़तरनाक दिशा में जा रहा है...



देश फिर एक ख़तरनाक दिशा में जा रहा है ! पुलवामा की घटना के बाद अखबारों, न्यूज़ चैनलों से लेकर सोशल मीडिया तक पर "देशभक्ति" का जुनून उबाल पर है ! चारो ओर एक के बदले दस सर लाने, पाकिस्तान पर अभी हमला करके उसे नेस्तनाबूद कर देने और "गद्दार कौम" के लोगों को सबक सिखाने का शोर गूँज रहा है ! नतीजे भी आने लगे हैं ! जम्मू में हिन्दुत्ववादी गुंडों ने मुस्लिम बस्तियों पर हमले किये I देहरादून के विभिन्न शिक्षा-संस्थानों में पढ़ने वाले 700 छात्र शहर आतंक के साये तले जीते हुए शहर छोड़ने के बारे में सोच रहे हैं ! एक जगह करीब 20 कश्मीरी छात्राओं ने जुनूनी भीड़ से बचने के लिए अपने को हॉस्टल में भीतर से बंद कर लिया I बंगलुरु और देश के अधिकांश शहरों में जहाँ कश्मीरी छात्र पढ़ते हैं, उन्हें धमकियाँ दी जा रही हैं ! कश्मीर की तबाह अर्थ-व्यवस्था के कारण हजारों की तादाद में जो कश्मीरी देश के महत्वपूर्ण पर्यटन-स्थलों पर शिल्प और दस्तकारी की दूकानें चलाकर परिवार का पेट पालते हैं, उन्हें धमकाया जा रहा है !

मैंने कुछ ही दिनों पहले एक पोस्ट डाली थी कि लोकरंजक नारों के फुस्स होने के बाद मोदी सरकार ने राम मंदिर का मुद्दा उछाला है, लेकिन अगर यह काठ की हाँडी दुबारा नहीं चढ़ी तो चुनावों से पहले पाकिस्तान-विरोधी लहर उभाड़ी जा सकती है और सीमा पर तनाव पैदा हो सकता है, क्योंकि अंधराष्ट्रवादी जूनून फासिस्टों का अंतिम शरण्य होता है और भारत की ठोस परिस्थितियों में तो इसके साथ-साथ धार्मिक ध्रुवीकरण भी आसान हो जाता है ! आश्चर्य है (यानी नहीं है ) कि जल्दी ही ये हालात पैदा हो गए ! आश्चर्य तो इस बात पर भी होता है कि आतंकी हमले के अंदेशे की खुफिया रिपोर्ट के बाद भी CRPF के इतने बड़े काफिले को एक साथ भेजा गया और सभी जानते हैं कि जिसतरह सेना के काफिले के गुजरने के लिए पूरा हाईवे खाली कराया जाता है, वैसा CRPF के मामले में नहीं होता ! तो क्या यह ऐसे ही किसी वारदात को न्योता देना नहीं था ? और इस लापरवाही पर अब कोई चर्चा नहीं हो रही है ! होने को कुछ भी हो सकता है ! फासिस्ट सत्ताओं के षडयंत्रों-कुचक्रों का इतिहास उठाकर देख लीजिये !

जो लोग पूरे कश्मीर की जनता को सबक सिखाना चाहते हैं, उन्हें ज़रा रुककर सोचना चाहिए कि आखिर वहाँ ये हालात कैसे पैदा हुए कि घाटी की 90 फीसदी आबादी में भारत-विरोधी भावनाएँ सुलग रही हैं ! उन्हें पता करना चाहिए कि घाटी में सेना और अर्ध-सैनिक बलों के हाथों कितने लोग मारे गए हैं, कितने लोग ग़ायब हुए हैं, कुनान-पोशपुरा जैसी कितनी घटनाएँ घटी हैं, और कितनी गुमनाम कब्रें हैं ! यह सच है कि पाकिस्तान-परस्त अलगाववादी भी इस आँच पर अपनी रोटियाँ सेंक रहे हैं और पाकिस्तानी शासक वर्ग भी ! पर समूची जनता सिर्फ़ और सिर्फ़ गलत और दमनकारी नीतियों के चलते उस मुकाम पर पहुँची है कि अब आतंकी पाकिस्तान से नहीं आते बल्कि लोकल आबादी में से आते हैं और आम ग़रीब के बच्चे-बच्चियाँ भी ग्रुप बनाकर सेना पर पत्थरबाजी करते हैं ! यह अटल सत्य है कि कश्मीर-समस्या का समाधान बन्दूक की नोक पर नहीं होगा, न ही वहाँ के स्वयंभू दलाल नेताओं से सौदेबाजी करके होगा, बल्कि आम अवाम को भरोसे में लेकर ही हो सकता है ! तबतक क़त्लो-गारत का यह सिलसिला चलता रहेगा I जैसे कश्मीर की आम जनता मर रही है, वैसे ही सेना और अर्ध-सैनिक बलों के जो जवान मर रहे हैं वे भी आम गरीब घरों से ही आते हैं ! युद्ध देश के भीतर हो या सीमा पर, तोपों का चारा तो आम घरों के गरीब ही बनते हैं ! पर ठन्डे दिमाग से यह भी सोचिये कि जो लोग जीवन-यापन के लिए सेना में भरती होते हैं, उनका जनता के प्रति क्या रवैया होता है ! असम रेजिमेंट के मुख्यालय के बाहर मणिपुर की माओं का वह नग्न प्रदर्शन याद है या नहीं ? CRPF का जो काफिला घाटी में जा रहा था वह वहाँ के लोगों के लिए गुलदस्ते लेकर नहीं जा रहा था ! यह एक नंगा और बदसूरत सच है !

एक और बात गौरतलब है ! इससमय अंधराष्ट्रवादी जुनून की जितनी भारत के शासकों को ज़रूरत है, उतना ही पाकिस्तान के शासकों के लिए भी ज़रूरी है कि भारत के साथ तनाव कुछ विस्फोटक रूप में पैदा हो ! पाकिस्तान में भी इमरान खान के सारे लोकरंजक वायदे फुसफुसे पटाखे साबित हुए हैं और उन्हें परम भ्रष्ट पाकिस्तानी सेना की कठपुतली माना जा रहा है I वहाँ की अर्थ-व्यवस्था ध्वस्त हो रही है, बेरोज़गारी और महंगाई आसमान छू रही है ! ऐसे में सरकार को वहाँ भी देशभक्ति के जुनून, युद्ध के माहौल, या सीमित स्तर के युद्ध की ज़रूरत है !

और इस प्रश्न का एक अंतरराष्ट्रीय पहलू भी है ! साम्राज्यवादी देशों का आर्थिक संकट इससमय विस्फोटक रूप लेता जा रहा है ! बदहवास ट्रम्प वेनेजुएला सहित कई लैटिन अमेरिकी देशों में सीधे सैनिक कार्रवाई या गृहयुद्ध जैसी स्थिति पैदा करने के बारे में सोच रहा है ! युद्ध और हथियारों की बिक्री से साम्राज्यवादियों को हमेशा ही अपना आर्थिक संकट दूर करने में मदद मिलती है I पश्चिमी देशों के हथियारों के सबसे बड़े खरीदार या तो मध्य-पूर्व के देश हैं, या फिर भारत और पाकिस्तान ! भारतीय उपमहाद्वीप में अशांति पैदा होने के साथ ही साम्राज्यवादियों की तो चाँदी कटने लगेगी !

ये सारी बातें हार्डकोर जुनूनियों को नहीं समझाई जा सकतीं, पर जो आम भोले-भाले नागरिक ऐसी घटनाओं के बाद बिना अधिक आगा-पीछा सोचे हुए अंधराष्ट्रवादी "देशभक्ति" के भावोद्रेक और प्रतिशोधी प्रतिहिंसा की लहर में बहने लगते हैं, उनसे थोड़ा रुककर पूरे सवाल पर सोचने की अपील तो की ही जा सकती है और उनसे यह अपेक्षा भी की जा सकती है ! याद रखिये, देश कागज़ पर बना नक्शा नहीं होता ! देश आम लोगों से बनता है! देश के आम लोगों के हित से सरोकार रखना ही सच्ची देशभक्ति है !

(16फरवरी, 2019)

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