Wednesday, September 26, 2018

हिन्दी दिवस




ये हिन्दी दिवस, मित्रता दिवस, पिता दिवस, माता दिवस, प्रेम दिवस,पृथ्वी दिवस आदि-आदि चीज़ें मेरे भीतर बेहद चिढ़ पैदा करती हैं I ई सब खलिहरों और नक़लचियों के बोरियत मिटाने और ज़िन्दगी में थोड़ा "बहार" लाने के बहाने हैं ! ये सारी चीज़ें उन्हीं को मुबारक I मैं तो बस इतना जानती हूँ कि जिस भाषा में मैं विचार, प्यार, दोस्ती, संघर्ष और अन्याय से नफ़रत को अभिव्यक्ति देती हूँ, वह मेरे वजूद का एक हिस्सा है I जिस भाषा में मैं सोचती और सपने देखती हूँ, उसके बिना मैं अपने होने की कल्पना नहीं कर सकती I 'हिन्दी दिवस' की परिकल्पना मानसिक उपनिवेशन की कुंठा की अभिव्यक्ति से अधिक कुछ भी नहीं I जो लोग सत्ता के पैसे से भोपाल से लेकर मॉरीशस तक विश्व हिन्दी सम्मलेन में भागीदारी करके कृतकृत्य होते हैं, चाहे वे घोषित वामपंथी हों या दक्षिणपन्थी, पक्के पत्तल-चाटू कुक्कुर होते हैं I ये सत्ताधारी जब आपसे आपके अंतर्वस्त्र भी छीन लेंगे तो फिर 'अंतर्वस्त्र दिवस' मनाने के लिए भी एक दिन मुक़र्रर कर देंगे I फिर सारे नंगे सार्वजनिक स्थलों पर एकत्र होकर 'अंतर्वस्त्र दिवस' मनाया करेंगे और अंतर्वस्त्रों की याद में बेहद-बेहद भावुक होकर भाषण दिए जायेंगे, कविताएँ पढ़ी जायेंगी और संस्मरण सुनाये जायेंगे !

(14सितम्‍बर,2018)

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