...हर प्रकार के महान प्रेम की तरह, बच्चे के लिए आदमी का प्रेम भी तभी सृजनात्मक बनता है और बच्चे को सच्चा तथा स्थाई सुख दे पाता है जबकि प्रेम करने वाले व्यक्ति के जीवन की परिधि को वह विशाल बनाता है, उसे वह एक अधिक मूल्यवान व्यक्ति में परिवर्तित कर देता है, किन्तु अपने प्रिय व्यक्ति को किसी मूर्ति में नहीं रूपान्तरित कर देता। ऐसा प्रेम जिसकी केवल एक ही व्यक्ति पर वर्षा की जाती है और जो जीवन का सारा सुख आनन्द अकेले उसी एक व्यक्ति से प्राप्त करता है -- अन्य सब चीज़ें उसके लिए एक बोझ और यन्त्रणा की वस्तुएँ बन जाती हैं -- दोनों ही सम्बन्धित व्यक्तियों के लिए नरक हो जा सकता है...
उसकी आत्मा की रक्षा करने और उसे समृद्ध बनाने के लिए आवश्यक है कि उसे उन सब चीज़ों को देखने और सुनने की शिक्षा दी जाये जिन्हें देखने और सुनने की क्षमता उसमें आ गयी है, जिससे कि तुम्हारे प्रति उसका प्रेम अगाध मित्रता तथा अनन्त विश्वास का स्वरूप ग्रहण कर ले।
-- फेलिक्स ज़र्जिन्स्की (जेल से पत्नी के नाम पत्र, 2दिसम्बर,1913)
(ज़र्जिन्स्की बोल्शेविक पार्टी के एक शीर्ष नेता और लेनिन तथा स्तालिन के अनन्य सहयोगी थे। ज़ारशाही के जेलों में लम्बे समय तक यातना झेली। क्रांति के बाद वे 'चेका' के स्थायी अध्यक्ष थे, जो क्रांति विरोधी कार्रवाईयों में लिप्त प्रतिक्रांतिकारियों को कुचलने के साथ ही क्रांति और गृहयुद्ध के दौरान यतीम हुए बच्चों की देखरेख भी करती थी)
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