Tuesday, February 13, 2018

तानाशाह हँसने से डरता है।



तानाशाह हँसने से इतना डरता है
कि सुरक्षित सभा-भवन में
किसी ऐसी स्त्री के हँसने से भी
डर जाता है जो अरसे पहले
आम स्त्रियों के बहिष्कृत-लांछित झुण्ड से
बाहर निकल यहाँ आ गयी थी और
सत्ता के चौपड़ पर पांसे फेंकने के खेल में
शामिल हो गयी थी I
तानाशाह डरता है और सोचता है कि
फिर भी वह एक स्त्री है,
खेल में प्रतिपक्षी के रूप में
उसे संयत, विनम्र और चुप रहना होगा,
फिर भी वह एक स्त्री है
और इसतरह ठहाके लगा रही है ,
तानाशाह का खून खौल रहा है,
वह विषैली हँसी हँसते हुए विष उगल रहा है,
वह चेतावनी दे रहा है
और इस अंदेशे से डर रहा है कि
कि मुल्क की तमाम स्त्रियाँ अगर
इसीतरह बेशर्म-बेख़ौफ़ हँसने लगीं
तो क्या होगा धर्म-मर्यादा का
और उसकी सत्ता का !
तानाशाह सबसे अधिक नफ़रत करता है
और डरता है बच्चों, स्त्रियों और आम
कामगारों की हँसी से।
उसे लगता है कि शायद उन्होंने
उसे नंगा देख लिया है,
उसे लगता है कि लोग शायद
उसकी कायरता को,
या शायद मूर्खता को,
या शायद उसकी मानसिक रुग्णताओं को,
या शायद उसकी दुरभिसंधियों और पाखण्ड को
भाँप गए हैं।
तानाशाह को ऐसी हँसी में अपनी
मृत्यु की आहट सुनाई देती है
और ऐसी हँसी के अंदेशे से वह
इतना घबराया रहता है
कि अपने सुरक्षित सभा-भवन में
उस स्त्री की हँसी को भी बर्दाश्त नहीं कर पाता
जो अरसे पहले ही आम स्त्रियों जैसी
नहीं रह गयी थी।

--कविता कृष्‍णपल्‍लवी
(9 फरवरी, 2018)




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