Thursday, May 18, 2017




वैयक्तिक निर्भरता के सम्‍बन्‍ध ऐसे पहले सामाजिक रूप हैं जिनके अन्‍तर्गत मानवीय उत्‍पादन क्षमता एक अल्‍प सीमा तक और कुछ अलग-थलग स्‍थलों पर विकसित होती है। वस्‍तुपरक निर्भरता पर टिकी हुई वैयक्तिक स्‍वतंत्रता वह दूसरा महान रूप है, जिसके अन्‍तर्गत सामान्‍य सामाजिक चयापचय (मेटाबॉलिज्‍़म) की, सार्विक सम्‍बन्‍धों की, सर्वतोमुखी आवययकताओं और सर्वतोमुखी क्षमताओं की, एक व्‍यवस्‍था पहली बार अस्तित्‍व में आती है। व्‍यक्तियों के सार्विक विकास पर ओर उनकी सामाजिक सम्‍पदा के रूप में उनकी सामुदायिक, सामाजिक उत्‍पादकता के अन्‍तर्गत उनकी मा‍तहती पर, आधारित स्‍वतंत्र वैयक्तिकता तीसरी अवस्‍था है।
-- कार्ल मार्क्‍स, 'ग्रुंड्रिस्‍से'(1857)

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