Wednesday, May 24, 2017




कार्ल मार्क्स के 199वें जन्मदिन (5 मई ) के अवसर पर
( पूंजीवाद के विडंबनापूर्ण बुनियादी अंतरविरोध और मानवद्रोही चरित्र के बारे में मार्क्स के इस कथन में वैज्ञानिक परिशुद्धता के साथ ही अदभुत विरल काव्यात्मकता देखने को मिलती है । )
"हमारे युग में हर वस्तु अपने गर्भ में अपना विपरीत गुण धारण किए हुए प्रतीत होती है । हम देख रहे हैं कि मानव श्रम को कम करने और उसे फलदायी बनाने की अदभुत शक्ति से सम्पन्न मशीनें लोगों को भूखा मार रही हैं , उन्हे थकाकर चूर कर रही हैं । दौलत के नूतन स्रोतों को किसी अजीब जादू-टोना के जरिये अभाव के स्रोतों में परिणत किया जा रहा है । तकनीक की विजयें चरित्र के पतन से खरीदी जा रही हैं , और लगता है कि जैसे-जैसे मनुष्य प्रकृति को विजित करता जाता है, वैसे-वैसे वह दूसरे लोगों का अथवा अपनी ही नीचता का दास बनता जाता है । विज्ञान का शुद्ध प्रकाश तक अज्ञान की अंधेरी पार्श्वभूमि के अलावा और कहीं आलोकित होने में असमर्थ प्रतीत होता है । हमारे सारे आविष्कारों तथा प्रगति का यही फल निकलता प्रतीत होता है कि भौतिक शक्तियों को बौद्धिक जीवन प्रदान किया जा रहा है तथा मानव जीवन को प्रभावहीन बनाकर भौतिक शक्ति बनाया जा रहा है । एक ओर आधुनिक उद्योग और विज्ञान के बीच, और दूसरी ओर ,आधुनिक कंगाली तथा अधःपतन के बीच का यह बैरभाव, हमारे युग की उत्पादक शक्तियों तथा सामाजिक सम्बन्धों के बीच का यह बैरभाव स्पृश्य, दुर्दमनीय तथा अकाट्य तथ्य है ।"
--- कार्ल मार्क्स
( People's Paper की जयंती पर भाषण )



पूँजीवादी समाज में श्रम का अलगाव तथा मेहनतकशों की दशा
वह ( अर्थशास्त्री ) मज़दूर को संवेदनहीन और समस्त आवश्यकताओं से वंचित प्राणी में ठीक उसीतरह बदल डालता है , जिसतरह मज़दूर के कार्यकलाप को समस्त कार्यकलाप से विशुद्ध अमूर्तकरण में बदल देता है । इसलिए उसे मज़दूर का सारा ऐशो-आराम अस्वीकार्य है और वह सबकुछ , जो सर्वाधिक अमूर्त आवश्यकता के पार जाता है -- चाहे वह निष्क्रिय आनंद के क्षेत्र में हो अथवा कार्यकलाप की सक्रिय अभिव्यक्ति हो -- उसे ऐशो-आराम प्रतीत होता है । राजनीतिक अर्थशास्त्र , सम्पदा का यह विज्ञान इसलिए साथ ही आत्मत्याग का , अभाव का , बचत का विज्ञान भी है -- और यह दरअसल इस हद तक पहुँचता है कि वह मनुष्य को ताज़ा हवा या शारीरिक व्यायाम की आवश्यकता में भी बचत करना सिखाता है । अद्भुत उद्योग का यह विज्ञान साथ ही विरतिवाद का भी विज्ञान है और उसका सच्चा आदर्श ऐसा विरत है जो खसोटने वाला कंजूस है,ऐसा विरत है जो उत्पादक दास है । इस विज्ञान का नैतिक आदर्श वह मज़दूर है , जो अपनी उजरत का एक हिस्सा बचत बैंक में जमा करता है और इस विज्ञान को यह प्रिय आदर्श व्यक्त करने के लिए एक दासवत कला भी मिल गई है : इस भावना में रंगमंच पर भावुकतापूर्ण नाटक प्रस्तुत किए जाते हैं । इसलिए राजनीतिक अर्थशास्त्र अपने सारे लौकिक और संवेदनशील रूप के बावजूद एक सच्चा नैतिक विज्ञान , तमाम विज्ञानों में सबसे अधिक नैतिक है। उसकी प्रमुख प्रस्थापना है आत्मत्याग , जीवन का , सारी मानवसुलभ आवश्यकताओं का त्याग । तुम जितना कम खाओगे , जितना कम पिओगे , जितनी कम किताबें ख़रीदोगे , थिएटर , नृत्यगृह , रेस्तरां में जितना कम जाओगे , जितना कम सोचोगे , जितना कम प्यार करोगे , जितना कम चिंतन करोगे , जितना कम गाओगे , जितनी कम चित्रकारिता करोगे , जितनी कम पट्टेबाज़ी करोगे , आदि , उतना ज़्यादा बचाओगे -- तुम्हारा खज़ाना उतना ज़्यादा बढ़ जाएगा , जिसे न तो कीड़े खा सकेंगे और जिसपर न जंग लग सकेगा -- यह है तुम्हारी पूँजी ।
--- कार्ल मार्क्स ('1844 की आर्थिक एवं दार्शनिक पांडुलिपियाँ ')

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