Wednesday, May 24, 2017



फ़िल्में बुनियादी रूप से दो किसम की होती हैं: एक यथास्थिति की फिल्म और दूसरी संघर्ष की फिल्म | मोटे तौर पर फ़िल्में यथास्थिति को कायम रखती हैं | अगर आप वैचारिक हैं, तो आपको संघर्ष करना चाहिए | संघर्ष भाषा से, संगीत से....असल बात यह है कि यथास्थिति कायम न रखी जाए, उसे अस्थिर किया जाए | मुझे जब कभी उसे हिलाने-डुलाने का मौक़ा मिलता है, मैं ऐसा करता हूँ।
-- फिल्म निर्देशक सईद मिर्ज़ा

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