Saturday, May 14, 2016



... मार्क्‍स सबसे पहले एक क्रांतिकारी थे। जीवन में उनका वास्‍तविक उद्देश्‍य पूँजीवादी समाज तथा जिन राजकीय संस्‍थाओं को उसने कायम किया था, उनका अन्‍त करने में किसी न किसी रूप में मदद पहुँचाना था। उनका वास्‍तविक जीवनोद्देश्‍य आधुनिक सर्वहारा वर्ग के मुक्ति आंदोलन में मदद पहुँचाना था -- उस सर्वहारा वर्ग के मुक्ति आन्‍दोलन में जिसे उसकी स्थिति तथा उसकी आवश्‍यकताओं के सम्‍बन्‍ध में, उसके उद्धार के लिए आवश्‍यक पूर्व-परिस्थ्‍ितियों के सम्‍बन्‍ध में सबसे पहले स्‍वयं उन्‍होंने चेतना प्रदान की थी। लड़ना उनका मूल गुण था। और जिस भावोन्‍मेष से, जिस सिद्धान्‍तवादी दृढ़ता तथा जिस सफलता से वे लड़े उसकी शायद ही कोई बराबरी कर सके...
और इसीलिए मार्क्‍स अपने युग के ऐसे आदमी थे जिनको सबसे अधिक घृणा और सबसे अधिक बदनामी का सामना करना पड़ा। निरंकुश तथा प्रजातंत्रवादी दोनों ही प्रकार की सरकारों ने उन्‍हें अपने देशों से निर्वासित किया था। पूँजीपति, वे चाहे अनुदारपंथी हों, चाहे अतिजनतंत्रवादी, उन्‍हें बदनाम करने में एक दूसरे से होड़ करते थे। इन तमाम चीज़ों की ओर से मार्क्‍स लापरवाही से इस तरह मुँह फेर लेते थे जैसे कि इनका कोई महत्‍व ही न हो, वे महज कूड़ा हों। वे उनकी पूर्णतया उपेक्षा करते थे। उनका जवाब केवल तभी वे देते थे जब आवश्‍यकतावश एकदम मजबूर हो जाते थे। और आखिर में जब वे मरे तो साइबेरिया की खानों से लेकर कैलीफोर्निया तक, योरोप और अमेरिका के तमाम भागों में दसियों लाख क्रांतिकारी सहकर्मियों के वे प्रेम-भाजन बन चुके थे, उन्‍हें उनकी अगाथ श्रद्धा प्राप्‍त थी और उनके उठ जाने से आज वे सब शोकाकुल हैं। और मैं आपको बताना चाहता हूँ कि उनके विरोधियों की संख्‍या चाहे कितनी ही बड़ी क्‍यों न रही हो, किन्‍तु उनका व्‍यक्तिगत शत्रु एक भी नहीं था।
उनका नाम युगों युगों तक‍ अमर रहेगा, और उनका काम भी।

फ्रेडरिक एंगेल्‍स
(कार्ल मार्क्‍स की समाधि पर दिये गये भाषण का एक अंश, 17 मार्च, 1883)

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