Friday, April 15, 2016




वक्त आ गया है कि आप लोग जो 'मानववादी हैं और व्यावहारिक बनना चाहते हैं,' यह समझ लें कि दुनिया में दो किस्म की नफरतें चल रही हैं। एक नफरत है जो कातिलों के दिल में है, जो उनकी आपसी स्पर्धा और भविष्य के डर से पैदा होती है -- कातिलों को कयामत का सामना करना ही है। दूसरी नफरत -- मेहनतकश वर्ग की नफरत -- जिन्दगी की मौजूदा तस्वीर से है और इस अहसास ने, कि शासन करने का अधिकार उनका ही होना चाहिए इस नफरत की लौ को और भी तेज और रोशन कर दिया है। ये दोनों नफरतें गहराई के एक ऐसे बिन्दु पर पहुँच चुकी है कि कोई भी चीज़ या आदमी उनका आपस में समझौता नहीं करवा सकता, और वर्गों के बीच के अवश्यंभावी संघर्ष और मेहनतकशों की जीत के सिवा कोई चीज दुनिया को इस नफरत से मुक्ति नहीं दिला सकती।

मक्सिम गोर्की ('संस्कृति के निर्माताओं', तुम किसके साथ हो?)


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