Saturday, October 03, 2015

बादल राग : छ:


(अंश)

निराला
तिरती है समीर-सागर पर
अस्थिर सुख पर दुख की छाया --
जग के दग्‍ध हृदय पर
निर्दय विप्‍लव की प्‍लावित माया --
यह तेरी रण-तरी
भरी आकांक्षाओं से,
घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्‍त अंकुर
उर में पृथ्‍वी के, आशाओं से
नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,
ताक रहे हैं, ऐ विप्‍लव के बादल!
फिर-फिर।
बार-बार गर्जन
वर्षण है मूसलधार,
हृदय थाम लेता संसार,
सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार।
अशनि-पात से शापित उन्‍नत शत-शत वीर,
क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर,
गगन-स्‍पर्शी स्‍पर्द्धा-धीर।
हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार --
शस्‍य अपार,
हिल-हिल,
खिल-खिल, 
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते,
विप्‍लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।.........

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