Monday, March 30, 2015

स्‍वाइन फ्लू : मौतों के‍ लिए जिम्‍मेदार है पूँजीवाद का वायरस




स्‍वाइन फ्लू  का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है। देश में अभी तक 833 लोगों की मौत हो चुकी है और 12,000 लोग इस रोग की चपेट में हैं। ''स्थिति पर नियंत्रण'' और ''निपटने की पूरी तैयारी'' के सरकारी दावों से ज़मीनी हक़ीक़त एकदम भिन्‍न है। दिल्‍ली की स्थिति का जायजा लेने के बाद मैंने राजस्‍थान, मध्‍यप्रदेश, उत्‍तर प्रदेश और छत्‍तीसगढ़ के विभिन्‍न शहरों में रहने वाले परिचितों-मित्रों को फोन करके वहाँ के अस्‍पतालों में स्‍वाइन फ्लू के इलाज की व्‍यवस्‍था के बारे में पता करके बताने को कहा। स्थिति लगभग सभी जगह भयावह रूप से दुर्व्‍यवस्थि‍त और अनियंत्रित है।
दूरस्‍थ इलाकों में लोग जाँच और इलाज के लिए बदहवास इधर-उधर भाग रहे हैं। टेमी फ्लू दवा मुश्किल से मिल रही है। स्‍वाइन फ्लू के मरीज़ों में साँस की तकलीफ होने के कारण अक्‍सर वेंटिलेटर लगाने की ज़रूरत पड़ती है, लेकिन ज्‍यादातर सरकारी अस्‍पतालों में वेंटिलेटरों की भारी कमी है। छोटे शहरों में जाँच की व्‍यवस्‍था है ही नहीं। गाँवों में इस संक्रामक रोग से प्रभावित कितने लोगों की मौत हो चुकी है, सरकार इसका आँकड़ा जुटा ही नहीं सकती। जो आँकड़े बताये जा रहे हैं, मौतें उससे कई गुना अधिक हो रही हैं, इतना तय है।
देश की राजधानी की स्थिति से पूरे देश की स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है। दिल्‍ली में कुछ सरकारी अस्‍पतालों में नि:शुल्‍क जाँच की व्‍यवस्‍था है। टेमी फ्लू दवा सिर्फ सौ दुकानों पर मिल रही थी, अब 40 और को लाइसेंस दिया गया है, जो इस विशाल महानगर की आबादी और क्षेत्रफल को देखते हुए नितान्‍त अपर्याप्‍त है। सरकारी नियंत्रण के बाद अब निजी पैथोलॉजी लैब साढ़े चार हजार रुपये में स्‍वाइन फ्लू वायरस की जाँच कर रहे हैं। यह जाँच करने वाले निजी प्रयोगशालाओं की संख्‍या भी नितान्‍त अपर्याप्‍त है और साढ़े चार हजार की रकम भी एक ग़रीब के लिए बहुत बड़ी है। महीने में लाखों कमाने वाली ये प्रयोगशालाएँ चाहें तो यह जाँच ग़रीबों के लिए नि:शुल्‍क कर सकती हैं, लेकिन लाशों तक से मुनाफे कमाने के लिए तैयार मुनाफाखोर भला ऐसा क्‍यों करेंगे?
यह है स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र के मुक्‍त बाज़ारीकरण के नंगे-बेरहम खेल का एक भयावह नतीज़ा! स्‍वाइन फ्लू के नियंत्रण से बाहर होते जाने का एकमात्र कारण पूँजीवादी व्‍यवस्‍था, और विशेषकर नवउदारवाद की नीतियाँ हैं। ऐसी स्थितियाँ तबतक पैदा होती रहेंगी, जबतक स्‍वास्‍थ्‍य हर नागरिक का बुनियादी अधिकार नहीं होगा और सरकारें सभी नागरिकों को समान एवं नि:शुल्‍क स्‍वास्‍थ्‍य सेवा मुहैया कराने के लिए वचनबद्ध नहीं होंगी। स्‍वाइन फ्लू से हो रही मौतों के लिए कोई विशेष वायरस नहीं बल्कि यह पूँजीवादी व्‍यवस्‍था जिम्‍मेदार है।

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