Monday, March 30, 2015

नामगिनाऊ आलोचना की महिमा



नामगिनाऊ आलोचना लिखते हुए आज के बहुतेरे स्‍वनामधन्‍य वामपंथी जनवादी आलोचकगण जब स्‍त्री रचनाकारों की ओर अपनी कृपादृष्टि फेरते हैं तो एक ही साँस में गगन गिल, तेजी ग्रोवर, अनामिका, कात्‍यायनी, सविता सिंह, निर्मला गर्ग, शुभा, नीलेश रघुवंशी आदि-आदि... ये सारे नाम लाइन से एक साथ गिना डालते हैं। इनकी दृष्टि और अन्‍तर्वस्‍तु की भिन्‍नता पर कोई गम्‍भीर चर्चा देखने को नहीं मिलती। 
मिसाल के तौर पर, स्‍त्री प्रश्‍न पर जो दृष्टि अनामिका की कविताओं में और जो विमर्श अनामिका के निबंधों में (देखें, 'स्‍त्रीत्‍व का मानचित्र') देखने को मिलता है, वह उत्‍तर आधुनिक विचार सरणियों के छाया प्रभावों में विरचित उत्‍तर मार्क्‍सवादी नारीवाद एवं जेण्‍डर-विमर्श की विविध धाराओं तथा 'आइडेण्टिटी पॉलिटिक्‍स' की वैचारिकी से प्रभावित है। कात्‍यायनी की कविताओं और निबंधों की वैचारिक आधार भूमि सर्वथा अलग है। ये दोनों ही सर्वथा विपरीत ध्रुवांतों पर खड़ी रचनाकार हैं। कात्‍यायनी उत्‍तर-आधुनिक नारीवाद की सभी धाराओं से आमने-सामने की भिड़ंत करती हैं और साथ ही यांत्रिक सारभूतीकरण (एस्‍सेंशियलाइजेशन), भोंड़े भौतिकवाद, और आर्थिक नियतत्‍ववाद की जड़सूत्रवादी अवस्थितियों को भी खारिज करते हुए व्‍यापक ऐतिहासिक और समकालिक परिप्रेक्ष्‍य में  स्‍त्री-विमर्श प्रस्‍तुत करती हैं (द्रष्‍टव्‍य : 'दुर्ग द्वार पर दस्‍तक', 'प्रेम, परम्‍परा और विद्रोह' तथा 'कुछ जीवंत कुछ ज्‍वलंत' के स्‍त्री प्रश्‍न विषयक निबंध)।
आश्‍चर्य नहीं कि आज के ज्‍यादातर कलावादी ''मार्क्‍सवादी'' समालोचकों (और कथित वाम जनवादी कवि बिरादरी को भी) अनामिका का लेखन अधिक भाता  और सुहाता है। जो अधिक दार्शनिक सुसंगति के साथ मार्क्‍सवादी अवस्थिति पर खड़ा हो, वह सामाजिक जनवादियों  को सांस्‍कारिक तौर पर अपील नहीं करता और वे बिना पढ़े-सोचे, या तो चार लाइन में 'समरी ट्रायल' करके 'राजनीतिक मुखरता' या 'सपाटबयानी' का लेबल चस्‍पां कर देते हैं या चुप्‍पी साध लेते हैं।
स्‍त्री रचनाकारों की कोई एक समरूप श्रेणी बनती ही नहीं। उनके बीच की भिन्‍नताओं और अलग-अलग विशिष्‍टताओं की चर्चा होनी चाहिए, उनकी वैचारिक अवस्थितियों और कलात्‍मक पक्षों की गम्‍भीर पड़ताल होनी चाहिए। नामगिनाऊ आलोचना स्त्रियों पर मानो कृ‍पा करती है और साहित्‍य में उनके लिए आरक्षण-कोटा लागू कर देती है।  

No comments:

Post a Comment