Saturday, December 06, 2014




अगर ऐसी अनुकूल अवस्‍था होने पर ही संघर्ष छेड़ा जाये, जिसमें चूक की कोई गुजायश न हो, तो सचमुच ही विश्‍व-इतिहास की रचना अत्‍यंत सरल हो जायेगी। दूसरी ओर, यदि ''संयोग'' का इतिहास में योगदान न होता, तो उसका चरित्र घोर रहस्‍यवादी हो जाता। ये संयोग विकास के सामान्‍य क्रम के संघटक अंग होते हैं और अन्‍य संयोगों द्वारा संतुलित होते रहते हैं। पर तेज गति या विलंब बहुत कुछ ऐसे ''संयोगों'' पर अवलंबित होते हैं, जिनमें यह ''संयोग'' भी सम्मिलित है कि आंदोलन का पहले-पहल नेतृत्‍व करने वाले लोगों का कैसा चरित्र है।

-- (लुडविग कुगेलमान के नाम मार्क्‍स का पत्र, 17 अप्रैल, 1871)

No comments:

Post a Comment