Friday, May 30, 2014

पूँजीवादी व्‍यवस्‍था में न्‍याय का तराजू पैसे के हाथों में


--कविता कृष्‍णपल्‍लवी

पूँजीपति जब आपस में मुनाफे की लूटमार के लिए जंगली कुत्‍तों की तरह लड़ते हुए पूँजीवादी व्‍यवस्‍था का ही खेल बिगाड़ने लगते हैं, जब लूटपाट और टैक्‍स चोरी करते हुए वे पूँजीवादी उत्‍पादन और विनिमय की प्रणाली को ही अस्‍तव्‍यस्‍त करने लगते हैं, तो समूचे पूँजीपति वर्ग के व्‍यापक हित में राज्‍यसत्‍ता कुछ पूँजीपतियों को दण्डित भी करती है ताकि व्‍यवस्‍था सुचारु रूप से चलती रहे। लूटमार के इस बर्बर खेल के भी कुछ नियम होते हैं, जिनका अनुपालन करवाने की जिम्‍मेदारी राज्‍यसत्‍ता की होती है।
न्‍यायपालिका इसी राज्‍यसत्‍ता का एक अंग है, जो व्‍यवस्‍था के सुचारु संचालन के उपरोक्‍त काम में मदद करती है, पूँजीपतियों के आपसी झगड़े सुलटाती है और पूँजीवादी तंत्र के नियम-कानूनों के उल्‍लंघन पर दण्‍डों का प्रावधान करती है, लेकिन पूँजी और श्रम के बीच के विवाद में, शासक वर्गों  और जनता के हितों के बीच के टकराव में वह हमेशा ही पूँजी के पक्ष में और शासक वर्गों के पक्ष  में खड़ी होती है।
सहारा-प्रकरण न्‍याय के पूँजीवादी खेल का एक ज्‍वलंत उदाहरण है। वित्‍त बाजार के तमाम 'लूपहोल्‍स' का लाभ उठाकर सहारा परिवार ने आम ग़रीबों की बचत से पूँजी जुटाने के तमाम तरीके अपनाये और तमाम नये तरीके ईजाद किये। एक छोटी चिट फण्‍ड कम्‍पनी से शुरू करके मीडिया, रीयल एस्‍टेट, खुदरा व्‍यापार, होटल व्‍यवसाय आदि तमाम क्षेत्रों में इसने पूँजी लगायी। अलग-अलग पार्टियों के नेताओं और मनोरंजन जगत के लोगों की मदद का इस घराने की तरक्‍की में विशेष हाथ था, जिनका काला धन इस घराने में लगा हुआ था। पर सहारा की अंधेरगर्दी भरे तौर-तरीकों ने वित्‍त-बाजार में अराजकता की स्थिति पैदा कर दी। साथ ही, लाखों छोटे निवेशकों के साथ की जाने वाली धोखाधड़ी और वायदाखिलाफी से पैदा होने वाली अविश्‍वास एवं आक्रोश की स्थिति भी पूँजीवादी व्‍यवस्‍था के हित में नहीं थी। ऐसी स्थिति में व्‍यवस्‍था ने वित्‍त बाजार की नियामक संस्‍था 'सेबी' और फिर न्‍यायपालिका के जरिए हस्‍तक्षेप किया और 'सहारा' की ''बाजार-उच्‍छृंखलता'' को नियंत्रित करने के लिए कानूनी प्रक्रिया की शुरुआत की। सहारा की दो 'रीयल एस्‍टेट' की कम्‍पनियों द्वारा गैरकानूनी ढंग से निवेशकों से जुटाई गई 24,000 करोड़ रुपये की रकम वापस करने के कानूनी निर्देश की बार-बार अवहेलना के कारण सहारा के मुख्‍य निदेशक सुब्रत राय और अन्‍य दो निदेशक गत 4मार्च से तिहाड़ जेल में हैं। उनसे कहा गया है कि निवेशकों की रकम वापसी का ठोस टाइम टेबुल और करार देने के बाद ही वे रिहा हो सकेंगे।
सहारा ग्रुप राम जेठ मलानी के नेतृत्‍व में शीर्षस्‍थ वकीलों की एक टीम खड़ी करके बचाव के नाम पर उच्‍चतम न्‍यायालय की बेंच के साथ मानो 'माइण्‍ड गेम' खेल रहा है। जेठमलानी तो बेंच को सीधे-सीधे इस मामले की सुनवाई के लिए अयोग्‍य बताते रहे और 'सहारा' के विरुद्ध कोई फैसला देने से चेताते  रहे। इस बेंच के दोनो सदस्‍य जस्टिस राधाकृष्‍णन और जस्टिस जे.एस.केहर इत्‍तफाक से बेदाग, दृढ़ और उसूलपरस्‍त जज माने जाते हैं। पर यह पूरा मामला अपने आप में बताता है कि चन्‍द व्‍यक्ति यदि उसूलपरस्‍त हों, तो भी वे पूरी व्‍यवस्‍था को ठीक नहीं कर सकते। आज जस्टिस राधाकृष्‍णन रिटायर हो गये। बेंच के दूसरे सदस्‍य जस्टिस केहर ने उच्‍चतम न्‍यायालय रजिस्‍ट्री ऑफिस को एक नोट लिखकर कहा है कि सहारा से जुड़े किसी भी मामले की सुनवाई करने वाली बेंच में आगे उन्‍हें शामिल न किया जाये। अभी पिछले सप्‍ताह ही जस्टिस राधाकृष्‍णन ने कहा था कि सहारा केस की सुनवाई के दौरान उन्‍हें काफी प्रत्‍यक्ष-परोक्ष दबावों और तनावों का सामना करना पड़ा है। जस्टिस केहर भी, जाहिर है, कि इसीलिए इस मामले से अलग होना चाहते हैं।
मेरे एक परिचित सहारा के कई लोगों के सम्‍पर्क में रहते हैं। उन्‍होंने बताया कि नयी सरकार बनते ही सारी समस्‍या चन्‍द दिनों में ही हल हो जायेगी, सरकार चाहे भाजपा गठबंधन की बने या कांग्रेस गठबंधन और तीसरे मोर्चे की मिली-जुली बने। कई क्षेत्रीय दलों से और सभी दलों के कई सांसदों  से बातचीत हो चुकी है। यह बात भरोसा करने लायक लगती है। अन्‍ततोगत्‍वा होना यही है कि ''खेल के नियमों'' को तोड़ने के लिए आंशिक दण्‍ड और चेतावनी के बाद सहारा ग्रुप को फिर लूटमार के खेल में उतरने की छूट दे दी जायेगी। अतीत में भी कई पूँजीपति घरानों के साथ ऐसा ही हो चुका है। कभी-कभार ऐसा भी होता है कि पूरी पूँजीवादी व्‍यवस्‍था के हित में किसी एक पूँजीपति की बलि भी दे दी जाती है। पर ऐसा भी कम ही होता है। आंशिक दण्‍ड और चेतावनी की नज़ीरें ही अधिक हैं।
पूँजीवादी व्‍यवस्‍था में पूँजी और न्‍याय के रिश्‍तों को और न्‍यायपालिका की भूमिका को इस प्रकरण के उदाहरण से आसानी से समझा जा सकता है।  

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