Tuesday, March 18, 2014


मार्क्‍सवादी के लिए यह निर्विवाद है कि क्रान्तिकारी परिस्थिति के बिना क्रान्ति असंभव है, इसके अलावा, हर क्रान्तिकारी परिस्थिति भी क्रान्ति का कारण नहीं बनती। मोटे तौर से क्रान्तिकारी परिस्थिति के लक्षण क्‍या हैं? अगर हम नीचे के तीन मुख्‍य लक्षण गिनायें, तो निश्‍चय ही कोई ग़लती नहीं करेंगे: (1) जब शासक वर्गों के लिए बिना किसी तब्‍दीली के अपना शासन कायम रखना असंभव हो जाये; जब एक रूप में '' उच्‍च वर्गों'' के भीतर संकट हो, शासक वर्गों के नीति में संकट हो, जिससे एक ऐसी दरार पैदा हो जाये, जिसमें से उत्‍पीडि़त वर्गों का असंतोष और रोष फूट पड़े। क्रान्ति के होने के लिए आम तौर से ''निचले वर्गों का'' पुराने ढंग से रहना ''न चाहना'' नाकाफी होता है, उसके लिए यह भी ज़रूरी होता है कि ''उच्‍च वर्ग'' पुराने ढंग से रहने में ''असमर्थ हो जायें''; (2) जब उत्‍पीडि़त वर्गों का दु:ख और ग़रीबी सामान्‍य से अधिक तीक्ष्‍ण हो जायें; (3) जब उपरोक्‍त कारणों के फलस्‍वरूप उन जन-समुदायों की सरगर्मी में काफी वृद्धि हो जाये, जो ''शांतिमय'' काल में बिना शि‍कवा-शिकायत के अपने को लुटने देते हैं लेकिन तूफानी वक्‍त में संकट की तमाम परिस्थितियों द्वारा तथा ख़ुद ''उच्‍च वर्गों'' द्वारा भी स्‍वाधीन ऐतिहासिक कार्रवाई में खींचे जाते हैं।
इन वस्‍तुपरक परिवर्तनों के बगैर, जो न केवल अलग-अलग दलों और पार्टियों की, बल्कि अलग-अलग वर्गों की भी इच्‍छा पर निर्भर नहीं होते, क्रान्ति सामान्‍यत: असंभव होती है। इन सारे वस्‍तुपरक परिवर्तनों की समग्रता को क्रान्तिकारी परिस्थिति कहते हैं। ऐसी परिस्थिति 1905 में रूस में और सभी क्रान्तिकारी दौरों में पश्चिम में मौजूद थी। वह पिछली सदी के सातवें दशक में जर्मनी में भी मौजूद थी और 1859-1861 तथा 1879-1880 में रूस में हालांकि उन सूरतों में कोई क्रान्ति नहीं हुई। ऐसा क्‍यों हुआ? ऐसा इसलिए हुआ कि हर क्रान्तिकारी परिस्थिति भी क्रान्ति को जन्‍म नहीं देती। क्रान्ति केवल ऐसी परिस्थिति से पैदा होती है, जिसमें उपरोक्‍त वस्‍तुपरक परिवर्तनों के साथ एक आत्‍मपरक परिवर्तन भी, याने क्रान्तिकारी अवामी कार्रवाई करने की क्रान्तिकारी वर्ग की क्षमता भी जुड़ी हो, जो उस पुरानी सरकार को, जिसे अगर ''ढहा न दिया जाये'', तो उसका ''पतन'' कभी भी, संकट के दौर में भी, नहीं होगा, तोड देने (अथवा उसकी चूलें ढीली करने) के लिए पर्याप्‍त रूप से ज़ोरदार हो।
क्रान्ति के बारे में ये हैं मार्क्‍सवादी विचार, जिनका अनेकानेक बार विकास किया जा चुका है, जिन्‍हें सभी मार्क्‍सवादी अकाट्य स्‍वीकृत कर चुके हैं और जिनकी हम रूसियों के लिए 1905 के अनुभव द्वारा ख़ास तौर से पुष्टि हो चुकी है।
-- व्‍ला. इ. लेनिन

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