Sunday, February 20, 2011

अराजनीतिक बुद्धिजीवी


एक दिन
हमारी जनता का
सबसे मामूली आदमी
इस देश के
अराजनीतिक
बुद्धिजीवियों से
जिरह करेगा
उनसे पूछा जायेगा
कि उन्‍होंने क्‍या किया
जब उनका देश नष्‍ट हो रहा था
एक शान्‍त चिता की तरह
चुपचाप
छोटा और अकेला
कोई नहीं पूछेगा उनसे
उनकी पोशाक के बारे में
भोजन के बाद आराम की
लम्‍बी दुपहरों के बारे में
कोई जानना नहीं चाहेगा
''कुछ नहीं के दर्शन'' से
उनकी बाँझ लड़ाइयों के बारे में
उनकी समृद्ध आर्थिक समझ पर
कोई ज़रा भी ग़ौर नहीं करेगा
कुछ भी नहीं पूछा जायेगा उनसे
ग्रीक मिथकों के बारे में
अथवा उनकी आत्‍म-घृणा के सन्‍दर्भ में
जब उनमें से कोई
मरने लगेगा
कायरों की मौत
उनसे कुछ भी नहीं पूछा जायेगा
उनके वाहियात
स्‍पष्‍टीकरणों के बारे में
जो कि साफ-साफ झूठ की
छाया में उपजे हैं
और उस दिन
सबसे मामूली लोग आयेंगे
वे, जिनके लिए कहीं जगह नहीं है
अराजनीतिक बुद्धिजीवियों की
किताबों और कविताओं में
लेकिन जो रोज़ पहुँचाते रहे
उनके लिए तौर्तिलिया और अण्‍डे
वे, जिन्‍होंने उनके कपड़े रफू किये हैं
जिन्‍होंने उनकी गाडि़यां चलायी हैं
जिन्‍होंने उनके कुत्‍तों और बागीचों की
रखवाली की है
और उनका काम किया है।
 -ओतो रेने कास्तिलो

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