देर रात के राग
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Tuesday, January 04, 2011
रहस्य
रहस्य
मेरी पलकों पर टंगी हैं
कुछ बूंदें
आमंत्रित दुखों की ।
मेरी आत्मा पर
झुका है एक स्वप्न।
मेरे कानों में
फुसफुसा रही हैं स्मृतियां।
मेरी पीठ के नीचे है
पत्थर की कठोरता
और ऊपर तना है
छतरी-सा आसमान।
यूं तो
सोना भी उड़ना है।
1 comment:
baby kumari
18 November 2012 at 22:43
sunder!
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sunder!
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