Tuesday, May 04, 2021

कुछ बातें यूँ ही सी ,,, ,,,


कुछ बातें यूँ ही सी ,,, ,,,

सिर्फ़ दूर के लिए फ़िक्रमंद क्यों है ! दूर के साथ नज़दीक की चीज़ों को भी बारीक़ी के साथ देखना होता है (यानी व्यापक के साथ सूक्ष्म को, मैक्रो के साथ माइक्रो को), ऊँचाई से देखना होता है और पीछे मुड़कर देखना होता है ( यानी विहगावलोकन और सिंहावलोकन) और हर चीज़ को देखते हुए 'अपीयरेंस' को भेदकर 'एसेंस' को देखना होता है ! इसके लिए साइंस की नज़र पैदा करनी होगी ! रास्ता साफ़ है -- मार्क्सवादी फ़लसफ़ा का मुतालिया और तहक़ीक़ कीजिए !

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सपने इतने भी सच्चे नहीं लगने चाहिए कि ज़िन्दगी ही झूठी लगने लगे !

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ज़िन्दगी इतनी भी "ठोस" न लगने लगे कि इंसान सपने देखना ही भूल जाए !

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"हमें आप ज्यादा ज्ञान देने की कोशिश न करें ! हम मानकर चलते हैं कि भारतीय क्रान्ति की मंजिल, स्वरूप और रास्ते के बारे में हमारी जो समझदारी रही है वह बिलकुल सही है !"

"यही तो समस्या है ! आप मानकर चलते हैं, हम जानकर चलते हैं ! चूँकि हम जानकर चलते हैं इसलिए जीवन और समाज के बारे में और उसमें हो रहे बदलावों के बारे में अपनी जानकारी बढाते रहते हैं और विरोधी विचारों से टकराते रहते हैं ! इस टकराव में हम सिर्फ़ सिखाने की मुद्रा में नहीं रहते हैं, बल्कि सीखने की भी कोशिश करते रहते हैं !"

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"अब यथार्थवाद की पुरानी परिभाषा की बात मत कीजिए ! कला में बहुत कुछ विभ्रम होता है, मिथ्याभास होता है, झूठ होता है ! " 

"हाँ, यथार्थवाद भी  कहता है कि कला में उतना ही विभ्रम, मिथ्याभास और झूठ होता है जितना जीवन में होता है! लेकिन यथार्थवादी कला जीवन में विभ्रम और मिथ्याभास से टकराती है और  रहस्यों के उदघाटन के लिए, विभ्रमों के निवारण के लिए लगातार जद्दोजहद करती है !" 

4 May 2021

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