Monday, April 12, 2021

स्थिति भयावह है !



स्थिति भयावह है ! विकराल है । दूसरे दौर में कोरोना के जिस  स्ट्रेन ने हमला बोला है, यह म्यूटेशन के कारण बहुत अधिक ख़तरनाक और संक्रामक है । अभी मृत्यु-दर कम है पर विशेषज्ञों के अनुसार यह बढ़ती जायेगी और यही हो भी रहा है । WHO के विशेषज्ञों के अनुसार यह दौर  मई के मध्य तक अपना कहर बरपा करेगा । लेकिन फिर इसके तीसरे चरण की भी बहुत अधिक संभावना है । वायरस के इस नये स्ट्रेन पर अभी मौजूद टीके कितने कारगर होंगे, इस बारे में विशेषज्ञ वैज्ञानिक भी अभी कुछ निश्चित नहीं बता पा रहे हैं । 
स्थिति की भयावहता को हमारा यह गलीज, महाभ्रष्ट, लुटेरा, पंगु सिस्टम सौगुना अधिक संगीन बना रहा है । पूरे देश का चिकित्सा-तंत्र उतना ही लचर है जितना एक साल पहले कोविड के पहले दौर के समय था । चौकीदार चोट्टे ने कोविड से निपटने के लिए 20 हज़ार करोड़ का जो कोष बनाया था, वह शायद धनपशुओं और उनके टट्टुओं का पिछवाड़ा पोंछने के लिए टायलेट पेपर खरीदने में ख़र्च हो गया । अस्पताल वैसे ही हैं । न उनकी संख्या बढ़ी, न मेडिकल स्टाफ बढ़ा, न बेड्स बढ़े, न स्पेशल कोविड वार्ड्स बढ़े, न एम्बुलैंस बढ़े । हाँ, मरने वालों के लिए नये श्मशान घाट ज़रूर बन रहे हैं । कोविड के इस नये हमले में पिछली बार की ही तरह दूसरे गंभीर रोगियों के इलाज की भयंकर अनदेखी हो रही है और ऐसी मौतों की संख्या भी बढ़ती जा रही है । आने वाले दिनों में यह स्थिति भी बद से बद्तर होती चली जायेगी । 
हत्यारे भ्रष्ट गंजेड़ियों की नीतियों और फ़ैसलों का आलम यह है कि एक ओर आंशिक लाकडाउन और नाइट कर्फ्यू जैसे कदम उठाये जा रहे हैं, जिनसे कोई लाभ नहीं होगा, यह सिद्ध हो चुका है । दूसरी ओर लाखों की भीड़ कुंभ-स्नान कर रही है और धुँआधार चुनावी रैलियाँ हो रही हैं । नीरो पगलवा पिछली बार ताली-थाली बजवा रहा था, इसबार टीकोत्सव मनाने के लिए कह रहा है । अगली बार सभी मृतकों की मोक्ष प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिए श्मशानघाटों में तांत्रिक क्रिया और मंदिरों में यज्ञ करने को कहेगा और सारे अंधे-उन्मादी जूतिए 'मोदी-मोदी' का जैकारा बोलेंगे । 
कोविड के दूसरे चरण का आतंक फैलते ही शहरों से मज़दूरों का पलायन फिर शुरू हो गया है । प्रकोप बढ़ने के साथ ही फिर सड़कों पर भूखे-प्यासे मज़दूरों का रेला उमड़ पड़ेगा और इसबार भी उनके ऊपर विपत्ति का कहर उतना ही भयंकर होगा क्योंकि पिछले साल से हुक्मरानों ने कोई भी सबक नहीं लिया है और पहले से कोई भी इंतजाम नहीं किया है ।
कोविड का कहर अपनी जगह पर, लेकिन इतना तय है कि कोविड और अन्य बीमारियों से ज्यादा मौतें इस सिस्टम की वजह से हुई हैं, जनता के अपार कष्टों का कारण यह व्यवस्था है । यह 'टोटल सिस्टम फेल्योर' है -- इस बात को हमें समझना होगा । यह सूअर नेता और कुत्ती मीडिया हमें कभी नहीं बतायेगी । 
और 'कांस्पिरेसी थियरी' की फेरी वाले ये कोविडियट्स अलग से अज्ञान और विभ्रम का कुहासा फैलाते रहते हैं । ये गधे कभी कहते हैं कि कोरोना कुछ है ही नहीं, कभी कहते हैं कि यह सामान्य नजला-जुकाम है । इनका कहना है कि यह सारा तूमार दवाएँ और टीका बेचकर मुनाफा कमाने के लिए खड़ा किया गया है । इन पगलेटों को यह भी नहीं समझ कि विश्व पूँजीवाद के चौधरी केवल फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री के लिए नहीं बल्कि उद्योग, वित्त और सेवा के सभी क्षेत्रों में लगी पूँजी के हितों के लिए काम करते हैं । फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री ही पूरा पूँजीवाद नहीं है । कोरोना के संकट ने पहले से ही दीर्घकालिक मंदी की शिकार विश्व पूँजीवादी उत्पादन-प्रणाली को दुशचक्रीय निराशा में धकेल दिया है । यह अधिशेष निचोड़ने वाले जोंकों के लिए भी एक संकट है । यह तो तय ही है कि पूँजीपति हर 'आपदा में अवसर' ढूँढ़ते रहते हैं । दवाओं और टीकों आदि के मामलों में अंधी होड़ में लगी फार्मास्युटिकल कंपनियाँ घपले-घोटाले करती हैं, सरकारों को घूस देती हैं, टेस्ट आदि में वैज्ञानिक मानकों का पालन नहीं करतीं, मीडिया को ख़रीद कर तथ्यों को ब्लैकआउट करतीं हैं और मनचाहा प्रचार करवातीं हैं और अकूत मुनाफा कूटती हैं ! यह तो पूँजीवाद की स्वाभाविक क्रिया-विधि है । लेकिन इस तर्क को आगे बढ़ाकर अगर कोई यहाँतक पहुँचा दे कि कोरोना कुछ भी नहीं, एक हौव्वा है जो फार्मास्युटिकल कंपनियों द्वारा और हेल्थ इंडस्ट्री द्वारा दवाएँ, टीका और हेल्थकेयर बेचकर मनमाना मुनाफा कूटने के लिए खड़ा किया गया है तो पक्का उसके दिमाग़ का कोई स्क्रू खिसककर गिर गया है । जितने सतही, अधकचरे बौद्धिक गधे इतिहास और समाज की आर्थिक-राजनीतिक गतिकी का ककहरा भी नहीं समझते, वही तरह-तरह के 'षड्यंत्र सिद्धांतों' का खोमचा सजाकर फेरी लगाते रहते हैं ।
इन बौद्धिक खच्चरों से वैसे भी इन दिनों मेरा दिमाग़ बहुत ख़राब है । अबतक कोविड हमारे दो कामरेडों के पिताओं की बलि ले चुका है । अलग-अलग इलाकों के क़रीब बीस कामरेड इसकी चपेट में आये और कुछ तो मौत के मुँह से निकल कर बाहर आये । मैं खुद पिछले साल अक्टूबर में शिकार हुई और उत्तर-कोविड दुष्प्रभावों को अभी तक झेल रही हूँ । कोविड का शिकार होने वाले मेरे कई मित्र, परिजन और परिचित साहित्यकार हैं । कम से कम पच्चीस-तीस लोग काल के गाल में समा गये । अब अगर कोई बौद्धिक बेवड़ा आकर मुझसे बोले कि कोविड कुछ नहीं, मुनाफाखोरों द्वारा उड़ाई गयी एक अफवाह है; तो उसे कम से कम 'उल्लू, गधा' आदि कहकर भगा देने का अधिकार तो मुझे होना ही चाहिए ।

(12 Apr 2021)

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