Tuesday, July 21, 2020

 

पिछली बार का अपना गुस्सा और बेइज़्ज़ती भूलकर मोहल्ले वाला भक्त आज फिर पधार गया I कहने लगा,”बहनजी, आप एक न एक दिन मोदीजी की महिमा को ज़रूर समझ जायेंगी और फिर आप जैसी पढ़ी-लिखी, वीरांगना स्त्री को दुर्गावाहिनी का अध्यक्ष बना दिया जाएगा !”


मैंने तय किया कि इसबार भक्त के दिल को ठेस नहीं लगाऊँगी, सो मैं उसकी बातें सुनती रही I बातें क्या सुनती रही, भक्त के मुँह से ‘पड़धान मंतड़ी’, ‘छिच्छा मंतड़ी’, ‘रच्छा मंतड़ी’ जैसे शब्दों को सुनकर आनंदित होती रही I फिर मैंने कहा, “इस देश का शासन हिन्दू धर्म के एकदम उलटा चल रहा है I संघियों की तो ‘विनाशकाले विपरीत बुद्धि’ हो गयी है I अब सर्वनाश निश्चित है ! कोरोना तो उसी का एक संकेत मात्र है I देखो, शासन करने का अधिकार सिर्फ़ क्षत्रियों का है, लेकिन एक शूद्र, एक घांची तेली देश पर राज कर रहा है I महा अशुभ संकेत ! उधर ब्राह्मण का क्षेत्र यज्ञ, पूजा-पाठ, ध्यान और तपस्या है और राज-काज में राजा को सलाह देना है, लेकिन योगी आदित्यनाथ क्षत्रिय होकर संत बने हुए हैं, साथ ही राज भी कर रहे हैं और ब्राह्मणों को लगातार मरवा रहे हैं ! यह कैसा हिन्दू राष्ट्र है ! अरे सब भयानक धोखा है ! इसका नतीज़ा यह होगा कि शिव डमरू बजाते, तांडव करते एकदिन कैलाश से नीचे उतर आयेंगे और भारत-भूमि पर महाप्रलय मचा देंगे ! अब भी समय है, चेत जाओ ! तुम्हारे हिन्दू राष्ट्र का अधिपति गोमांस भक्षी ट्रम्प को और सांप-छिपकिली-तिलचट्टा-चमगादड़ खाने वाले शी जिन पिंग को झूला झुलाता है, ट्रम्प को देश लूटने की आज़ादी देता है और चीन को देश की ज़मीन का बड़ा हिस्सा दे देता है ! इतने बरस से सिंहासन पर बैठा है और कैलाश-मानसरोवर को छीनने की जगह और ज़मीन देता जा रहा है I यह है तुम्हारा हिन्दू राष्ट्र ! देखते जाओ ! ऐसे राक्षसी शासन के समर्थन के लिए कुम्भीपाक और रौरव नरक में हज़ारों साल न सड़ना पड़े तो बताना ! मैं तो आजकल वेद-पुराण-उपनिषद्-ब्राह्मण संहिताएँ पढ़ रही हूँ, इसलिए हिन्दू धर्म के प्रति आस्थावान होती जा रही हूँ ! मेरा मानना है कि हिन्दू राष्ट्र धर्मशास्त्रों के अनुकूल ही हो सकता है I यह जो हिन्दू राष्ट्र बनाने की बातें हो रही हैं, वे सरासर धोखा है !”


भक्त ये सारी बातें सुनकर गहरी चिंता में डूब गया ! कुछ सवाल उसने किये, लेकिन छान्दोग्य, माण्डूक्य और ऐतरेय उपनिषद्, मनुस्मृति और गरुड़ पुराण के हवालों से मैंने उसके निरुत्तर करते हुए गहरी चिंता की अंधी खाई में धकेल दिया ! फिर बात बदलते हुए मैंने उससे पूछा,”गायत्री मन्त्र पढ़ते हो?” उसने उत्साहपूर्वक कहा,”हाँ, डेली सुबह आठ बजे नहा-धोकर पूजा करता हूँ तो 108 बार उसका जाप करता हूँ !” मैंने बताया,”एकदम गलत! गायत्री मन्त्र सिर्फ़ ब्राह्मबेला में पढ़ा जाता है और पाँच माला, यानी 540 बार पढ़ा जाता है I कुसमय और कम बार पढ़ने से देवी गायत्री से अधिक उनकी पुत्री सरस्वती रुष्ट हो जाती हैं ! एक ब्राह्मण के सर पर तो उन्होंने अपनी वीणा ही पटक दी थी और उसकी सारी बुद्धि हर ली थी I एक ब्राह्मण जब चाहे जिस समय भी गायत्री मन्त्र का जाप करने लगता था और वह भी बिना धूप-दीप-नैवेद्य के ! बस गायत्री रुष्ट हो गयीं और उस ब्राह्मण की पत्नी एक शूद्र के साथ भाग गयी I तुम तो चतुर्वेदी हो ! कहाँ तो तुम्हे चारो वेदों का ज्ञाता होना चाहिए और कहाँ गायत्री मन्त्र-पाठ का विधि-विधान भी नहीं जानते ! ऊपर से तेलियों-बनियों की जै-जैकार करते घूम रहे हो ! अच्छा, ज़रा गायत्री मन्त्र का पाठ करो !”


भक्त ने गलत-सलत मन्त्र भयंकर उच्चारण-दोष के साथ जब पढ़ा तो मैंने चीखते हुए दोनों कानों में उंगली डालकर उसे रोक दिया,”अरे, बस करो ! ऐसे गलत-सलत मन्त्र-पाठ करके मुझे भी नरक का भागी मत बनाओ ! अरे तुम्हे तो ब्राह्मण क्या, अपने को हिन्दू कहना भी बंद कर देना चाहिए नालायक ! तुम्हारा क्या होगा ! जानते हो ! गलत गायत्री मन्त्र पढ़ने से एक हज़ार वर्षों तक महारौरव नरक में पड़े रहोगे और तुम्हारी जीभ पर एक दिन सौ बिच्छुओं से डंक मरवाया जाएगा और दूसरे दिन सौ सुइयाँ चुभोई जायेंगी !” गहन चिंता और भय के सागर में गोते लगाते हुए भक्त बोला,”उपाय क्या है?” मैंने उसे एक कागज़ पर गायत्री मन्त्र लिखकर दिया ! पर उसे संतोष नहीं हुआ ! उच्चारण-दोष सुधारने के लिए उसने मुझसे मन्त्र पढ़वाकर उसे अपने स्मार्ट फोन में रिकॉर्ड किया I मैंने उसे बताया कि छः माह तक वह ब्राह्म बेला में नहाकर पद्मासन लगाकर गायत्री मन्त्र का जाप करे, ब्रह्मचर्य का तथा यम-नियम-आसन का पालन करे, कमल के फूल और स्वास्तिक चिह्न से दूर रहे और घर में एकांत वास करते हुए वेदों और उपनिषदों का अध्ययन करे, भले ही कुछ समझ न आये लेकिन पुण्य-लाभ अवश्य होगा I मैंने उसे बताया कि छद्म-हिन्दू राष्ट्र का समर्थन करके महापाप का भागी बनने की जगह वह एक सच्चे धर्मनिष्ठ ब्राह्मण की तरह आदर्श हिन्दू राष्ट्र के निर्माण हेतु पूजा-पाठ करते हुए कल्कि अवतार की प्रतीक्षा करे !


भक्त ने मेरी बातें ध्यान से सुनीं ! बोला,”बहनजी, आप मेरी गुरु हुईं आज से ! अगर मैं भारद्वाज गोत्र का माथुर चतुर्वेदी ब्राह्मण नहीं होता तो आपका चरण-स्पर्श कर लेता, बल्कि आपका चरणामृत लेकर पी लेता I”


व्यग्र और भाव-विह्वल भक्त फिर तेज़ कदमों से अपने घर की ओर प्रस्थान कर गया !

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