Monday, April 06, 2020


बाँसुरीवाला बाँसुरी बजाता चलते चला गया ! नगर के सभी चूहे सम्मोहित उसके पीछे चलते चले गए ! बाँसुरीवाला एक नदी में उतर गया ! चूहे भी उतर गए और नदी की धारा में बहकर मर गए ! यह एक पुरानी, प्रसिद्ध कहानी है !

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हिटलर ने पूरे यूरोप और फिर पूरी दुनिया पर शासन करने के अंध-राष्ट्रवादी नारे दिए ! उसने आर्य नस्ल की सर्वश्रेष्ठता और यहूदियों के सफाए के नस्लवादी नारे दिए ! पूरी जर्मन कौम का बड़ा हिस्सा उसके जूनून में बह गया ! एक करोड़ से अधिक यहूदी मौत के घाट उतार दिए गए, गैस चैम्बरों में झोंक दिए गए ! दूसरे महायुद्ध में पूरा यूरोप खून का दलदल बन गया, शहर के शहर खण्डहर हो गए ! पर फिर हिटलर का भयंकर अंत हुआ ! उसके बहुतेरे समर्थक पागलपन और अवसाद के शिकार हो गए ! आज जर्मनी में कोई हिटलर का नाम नहीं लेना चाहता ! जो लोग नात्सी पार्टी के सदस्य थे, उनकी बाद की पीढियाँ आज तक इस तथ्य पर शर्मिन्दगी महसूस करती हैं और इसे छिपाती हैं !

मुसोलिनी ने भी इसीतरह पूरे इटली को दीवाना बना दिया था ! उसका अंत जानते हैं ? लोगों ने सड़कों पर उसे घसीटा और चौराहे पर उलटा टाँगकर उसकी लाश पर थूकते रहे ! इतनी नफ़रत, इतना गुस्सा लोगों में भर गया था !

फासिस्टों के अतिरिक्त, आप दुनिया के अन्य दूसरे तानाशाहों का भी इतिहास पढ़िए ! सुहार्तो, मार्कोस, बतिस्ता, दुबालियर, सोमोजा,पिनोशे, ट्रुजील्लो, शाह ईरान, हेल सिलासी, इदी अमीन , आदि-आदि ...-- सभी सोचते थे कि दबे-कुचले, निरीह से लगते लोग हमेशा उनका जैकारा बोलते रहेंगे और आजीवन वे सत्तासीन बने रहेंगे ! पर ऐसा कभी नहीं हुआ ! अपवादस्वरूप भी नहीं हुआ !

याद रखिये, हर अत्याचारी सत्ता नश्वर है ! अनश्वर सिर्फ़ जनता है ! तानाशाह हमेशा हारते आये हैं और अपने किये का दंड भुगतते आये हैं ! अजेय सिर्फ़ जनता है ! जब पराजय, उलटाव और ठहराव का अन्धेरा होता है तो लोग इस ऐतिहासिक सच्चाई को न देख पाते हैं, न समझ पाते हैं ! और बुद्धिजीवी !! इनकी तो पूछिए ही मत ! जब क्रांतियों की विजय के दौर होते हैं तो यह डफाली की तरह डागा-बाजा बजाते हुए आगे-आगे चलने लगता है ! और जब क्रांतियों की फिलहाली पराजय और पीछे हटने का दौर होता है तो यह काले कपड़े पहनकर रुदालियों की तरह छाती पीट-पीटकर, धाड़ें मार-मारकर रोने लगता है !

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यह जो खाया-अघाया-डकारता-पादता खुशहाल मध्य वर्ग कभी थाली-ताली बजाकर, कभी दीये जलाकर मोदी के जयकारे बोल रहा है, ये जो गोदी मीडिया के कुत्ते राग दरबारी गा रहे हैं, यही पूरा भारत नहीं है ! अभी कोरोना की आपदा के बाद, बिना किसी तैयारी के, चार घंटे की नोटिस पर जो देशव्यापी लॉकडाउन का कहर करोड़ों आम लोगों पर बरपा किया गया, भारत उन लोगों से बनता है ! 3 करोड़ से भी अधिक जो आबादी महानगरों और औद्योगिक केन्द्रों से दर-बदर हुई है और जिसने भूखे-प्यासे सैकड़ों और हज़ारों कि.मी. की दूरी तय की है, करीब 50 करोड़ की जो आबादी रोज़ कमाती और रोज़ खाती है, करीब 70 करोड़ के आसपास देश के जो सर्वहारा और अर्द्ध-सर्वहारा हैं, देश उनसे बनता और चलता है ! माना कि इस आम आबादी का भी एक बड़ा हिस्सा मोदी के लुभावने वायदों-नारों,तथा 'हिन्दू-मुस्लिम' और 'मंदिर-मस्जिद' की राजनीति का शिकार होता रहा है ! अभी भी है ! सभी पूँजीवादी पार्टियों की अबतक की राजनीति के नंगेपन और घटियाई ने ही विकल्पहीनता की स्थिति पैदा करके व्यापक आम मेहनतकश आबादी और मध्य वर्ग के एक बड़े हिस्से को हिंदुत्ववाद की राजनीति की गोद में धकेला है ! आम मज़दूरों के जिस हिस्से का उत्पादन की प्रक्रिया से कटाव हुआ है, उसका भी विमानवीकरण और लम्पटीकरण हुआ है ! इस आबादी के भीतर से मॉब लिंचिंग और दंगे करने वाली, हत्या और बलात्कार करने वाली पाशविक भीड़ तैयार की जाती है ! लेकिन जो व्यापक आम मेहनतकश और निम्न-मध्यवर्ग की आबादी है, अर्थ-व्यवस्था का संकट, बढ़ती मंहगाई और बेरोजगारी हिंदुत्ववाद की राजनीति से अंततोगत्वा उनके मोहभंग का सबब बनेगा ! लोग जब अपने बच्चों को पढ़ा नहीं पायेंगे, परिवार का दवा-इलाज़ नहीं करा पायेंगे, नौकरियाँ मिलेंगी नहीं और दिहाड़ी करके पेट भर पाना तक मुश्किल हो जाएगा, तो लोग धीरे-धीरे यह समझने लगेंगे कि हिन्दुत्व की राजनीति गरीबों को बाँटकर सिर्फ़ और सिर्फ़ अम्बानी-अदानी और तमाम थैलीशाहों की सेवा करती है ! लोगों का धीरज तब चुकने लगेगा ! नारों की हवा मिठाई खाकर आखिर कैसे किसी का पेट भरेगा ! लोग यह भी जल्दी ही समझने लगेंगे कि गुजरात-2002 मॉडल अगर बार-बार लागू किया जाएगा और 24-25 करोड़ मुस्लिम आबादी को लगातार कोने में धकेलते हुए, अलग-थलग करते हुए, दोयम दर्जे का नागरिक बनाने की कोशिश की जायेगी, तो देश अंततः एक खूनी गृहयुद्ध के भंवर में जाकर फँस जाएगा ! देर-सबेर दंगाइयों-बलवाइयों के परिवारों को भी यह बात समझ आने लगेगी कि नेताओं के बेटे तो नेता, पूँजीपति, अफसर बनाते हैं और विदेश चले जाते हैं और आम लोगों के नौजवान बेटों को भरमा-बरगलाकर उनके हाथ में चाकू और बम थम्हा दिया जाता है !

यह तय मानिए, चीज़ें जिस दिशा में लगातार बढ़ती जा रही हैं, उधर और भी भयंकर विनाश भारतीय समाज का इंतज़ार कर रहा है -- भयंकर मंहगाई, बेरोजगारी, सामाजिक अराजकता, दंगे-फसाद और सत्ता का नग्न-निरंकुश दमन ! लेकिन फिर चीज़ें वहाँ से भी आगे जायेंगी ! फिर मेहनतकशों और आम लोगों का सैलाब सड़कों पर उमड़ेगा ! वर्गीय एकजुटता और लामबंदी गति पकड़ेगी ! वर्ग संघर्ष आगे बढेगा ! जन-विद्रोहों के इन्हीं संघर्षों की आंच में तप-निखरकर और कुर्बानियाँ देकर एक नया क्रांतिकारी नेतृत्व अस्तित्व में आयेगा !

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तो इस बार जो बाँसुरीवाला बाँसुरी बजाता चला जा रहा है, और उसके पीछे सम्मोहित चूहों का कारवां चला जा रहा है, वह बाँसुरीवाला एक बढ़ियाई, तेज़ धार वाली नदी में उतरेगा ! उसके साथ चूहे भी नदी में उतरेंगे ! कहानी में थोड़ा फर्क यह है कि नदी की तेज़ धारा में बाँसुरीवाला भी बह जाएगा ! चूहे तो खैर बह ही जायेंगे !

(5अप्रैल, 2020)

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