Sunday, February 16, 2020


इस हाड़ कँपाती ठण्ड में देशभर के शाहीन बागों में जो स्त्रियाँ, यूँ कहें कि जो परिवार अपने तीन महीने, छः महीने, पाँच साल, दस साल के बच्चों को लेकर डटे हुए हैं, सैकड़ों की तादाद में जो लोग अपने बच्चों को लेकर उन रैलियों में पहुँच रहे हैं जिनपर जालिम पुलिस वालों द्वारा कभी भी आँसू गैस के गोले या पानी या लाठियों की बौछार की जा सकती है, उन तमाम लोगों को दिल से सलामी देने को जी चाहता है !

अक्सर खुद संघर्षों में शिरक़त करने वाले लोग भी अपने बच्चों को लेकर 'ओवर-प्रोटेक्टिव' रहते हैं कि आन्दोलनों के दमन और भगदड़ में उन्हें कहीं कुछ हो न जाए, कहीं उन्हें सर्दी न लग जाए, वगैरह-वगैरह ... ! हालात ने लोगों को अगर इस भय से मुक्त कर दिया है तो इसका मतलब यह है कि वे इस आन्दोलन में कमर कसकर उतरे हैं और किसी भी हद से गुज़र जाने के लिए तैयार हैं ! गौरतलब है कि इन निर्भीक लोगों में ज्यादातर लोग एकदम आम लोग हैं, समाज के तलछट में नरक का जीवन जीने वाले लोग ! उनकी ज़िन्दगी उन्हें हिम्मती और चीमड़ बनाती है ! और वे जब निर्भीक होकर सपरिवार सड़कों पर उतर आते हैं तो जालिम से जालिम सत्ताधारियों की भी रातों की नींद हराम हो जाती है ! यह मध्यवर्गीय बौद्धिक समाज होता है जो खुद अगर सड़कों पर उतरने की हिम्मत जुटा भी लेता है तो अपने परिवार और बच्चों को संघर्षों की आँच और जोखिमों से बचाये रखने की हरचंद कोशिशें करता है !

आज जो बच्चे अपने माँ-बाप के साथ सड़कों पर हैं, वे जीवन और इतिहास की पाठशाला का सबसे ज़रूरी पाठ पढ़ रहे हैं ! ये दिन उनके स्मृति-पटल पर सदा-सर्वदा के लिए अंकित हो जायेंगे ! ज्यादा उम्मीद यही है कि इनमें से अधिकांश बच्चे बड़े होकर इन्साफ़पसंद, निर्भीक और स्वाभिमानी नागरिक बनेंगे ! वे हमेशा अपने माता-पिता को प्यार करेंगे, उनपर गर्व करेंगे !

फ़ेलिक्स एदमुन्दोविच जर्जिन्स्की रूस के एक शीर्षस्थ बोल्शेविक क्रांतिकारी थे जिनके जीवन का बड़ा हिस्सा ज़ार की जेलों में मौत से भी बदतर यंत्रणा झेलते हुए गुज़रा था ! एक बार जब वह जेल की लम्बी सज़ा भुगत रहे थे तब उनका बच्चा यान एकदम छोटा था ! जर्जिन्स्की ने जेल से अपनी पत्नी को लिखे एक पत्र में लिखा था कि यान को शीशे के घर में बन्द गमले का फूल मत बनाना, उसे ज़िंदगी की सारी आँच और थपेड़ों को खुद महसूस करने देना जिससे वह एक सच्चा और बहादुर इंसान बन सके ! ये पंक्तियाँ दिल में गहराई तक उतर जाती हैं और ताउम्र याद रहती हैं !

उन तमाम माँओं को दिल की गहराइयों से सलाम जो हक़ और इन्साफ़ की इस लड़ाई में अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर ठण्ड और सत्ता के आतंक के साए तले सड़कों पर, पार्कों में जमी बैठी हैं !

(19जनवरी, 2020)

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