Tuesday, September 17, 2019

सवाल तो बनते हैं भाई, न्याय की मूर्तियों से सवाल तो बनते हैं !


मद्रास उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश विजया के.ताहिलरमानी ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है I वह देश भर के उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की वरिष्ठता सूची में पहले स्थान पर थीं Iअब उनके इस्तीफ़े की वजह भी जान लीजिये !

इस वरिष्ततम हाई कोर्ट जज को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने मद्रास हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से मेघालय हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के पद पर तबादला कर दिया था I बताते चलें कि मद्रास हाई कोर्ट में कुल जजों की संख्या पचहत्तर है, जबकि मेघालय हाई कोर्ट में तीन है I जस्टिस ताहिलरमानी अगस्त,2018 से अपने पद पर थीं और अक्टूबर,2020 में उन्हें रिटायर होना था ! ताहिलरमानी की जगह मेघालय हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ए.के.मित्तल को मद्रास हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस बनाया गया है ! ये दोनों तबादले कॉलेजियम ने "न्याय के बेहतर प्रशासन के हित में " किये हैं ! इस फैसले के विरुद्ध चार दिनों पहले जस्टिस ताहिलरमानी ने कॉलेजियम के समक्ष जो रिप्रजेंटेशन दिया था, उसे कल ठुकरा दिया गया जिसके बाद उन्होंने पद से इस्तीफ़ा दे दिया I

यह भी जान लेना ज़रूरी है कि कॉलेजियम के सदस्य कौन-कौन हैं ! भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गोगोई की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम के अन्य चार सदस्य हैं : जस्टिस एस.ए.बोबडे, एन.वी.रमन्ना,अरुण मिश्र, और रोहिंटन नरीमन I चारों उच्चतम न्यायालय के जज हैं ! बिना किसी स्पष्ट कारण के, वरिष्ठतम हाई कोर्ट जज को मद्रास हाई कोर्ट से उठाकर कॉलेजियम ने मेघालय जैसे तीन जजों वाले हाई कोर्ट में भेज ही क्यों दिया ? वह तो कॉलेजियम के सम्मानित सदस्य गण जानें, पर कुछ और भी तथ्य हैं जिन्हें हमें-आपको, सबको जानना चाहिए I

जस्टिस ताहिलरमानी ही वह जज हैं जिन्होंने गोधरा के बाद हुए गुजरात दंगों के दौरान हुए बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार काण्ड के अभियुक्तों को निचली अदालत से मिली आजीवन कारावास की सज़ा को बरक़रार रखा था !

अबतक विभिन्न कारणों से ऊपरी अदालतों के कई जजों ने इस्तीफ़े दिए हैं, लेकिन कॉलेजियम के निर्णय से असहमति के कारण इस्तीफ़ा देने के उदाहरण दुर्लभ ही रहे हैं ! जस्टिस ताहिलरमानी के पहले 2017 में कर्नाटक हाई कोर्ट के दूसरे नंबर के वरिष्ठतम जज जस्टिस जयंत पटेल का जब कॉलेजियम ने इलाहाबाद ट्रान्सफर कर दिया था तो उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया था I जस्टिस पटेल ही वह जज थे जिन्होंने गुजरात हाई कोर्ट में जज रहते समय इशरतजहाँ फर्जी मुठभेड़ काण्ड के सी.बी.आई. जाँच का आदेश दिया था !

यह भी जानना ज़रूरी है कि जिस जस्टिस ताहिलरमानी के साथ कॉलेजियम यह सुलूक कर रहा है, उन्होंने अपने कैरियर में कई ऐतिहासिक फैसले सुनाये हैं ! स्त्री बंदियों के गर्भपात के अधिकार को मान्यता देने वाला उनका फैसला ऐसे ही फैसलों में से एक है !

यह सब जो हो रहा है, उससे अब भला किसीको संदेह क्यों न हो कि न्यायपालिका नीचे से लेकर ऊपर तक सरकार की सेवा में सन्नद्ध हो चुकी है ! उच्चतम न्यायालय की व्यवस्था और जजों के भ्रष्टाचार बारे में शांतिभूषण, प्रशांतभूषण और जस्टिस मार्कन्डेय काटजू जैसे लोग जो कुछ भी कह चुके हैं, उसे हम यहाँ दुहराना नहीं चाहते !

इन स्थितियों पर मार्क्सवाद के किसी अध्येता को आश्चर्य नहीं होगा क्योंकि वह जानता है कि न्यायपालिका भी तटस्थता के अपने सारे दिखावों के बावजूद, राज्यसत्ता का ही अंग होती है और उसे अंततोगत्वा कार्यपालिका के निर्णयों पर ही ठप्पा मारना होता है जो शासक वर्गों के हितों की मैनेजमेंट कमेटी होती है ! मार्क्सवाद का अध्येता यह भी जानता है कि फासिस्ट समयों में जज एकदम सरकार के ताबेदार मुलाजिमों की तरह काम करने लगते हैं! मार्क्सवाद के अध्येता इतिहास के भी अध्येता होते हैं और उन्हें 1933-45 के दौरान की जर्मन अदालतों का व्यवहार भी याद होता है !

मार्क्सवाद के अध्येता साहित्य भी पढ़ते हैं और उन्हें बेर्टोल्ट ब्रेष्ट के नाटक 'मदर' का गीत 'वो सबकुछ करने को तैयार, सभी अफसर उनके' भी भली-भाँति याद होता है जिसमें ये लाइनें भी आती हैं: 'कानूनी किताबें उनकी, जज और जेलर उनके'...

लेकिन इससे क्या फ़र्क पड़ता है कि मार्क्सवाद के अध्येता यह सब जानते हैं ! फ़र्क तो तब पड़ेगा जब जनता की आँखों के सामने से भ्रमों का कुहासा छँट जाए ! इसके लिए मार्क्सवाद के अधिक से अधिक अध्येताओं को ज़मीनी स्तर का प्रयोगकर्ता बनना होगा, जन-समुदाय का शिक्षक, प्रचारक और अगुआ बनना होगा ! देखना तो यह है कि कितने लोग इस काम के लिए आगे आते हैं, अपने शांत, आरामदेह अध्ययन-कक्षों से बाहर निकलकर!

(6सितम्बर,2019)

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