Saturday, January 26, 2019


मेरा मानना है कि राजनीतिक और हर प्रकार के उसूली संबंधों में बेलागलपेट और दोटूक होना चाहिए, लेकिन किसी भी प्रकार के उसूली संघर्षों में निजी पूर्वाग्रह, पसंद-नापसंद, ईर्ष्या, जलन-कुढ़न, क्षुद्र प्रतिस्पर्द्धा आदि को कभी नहीं लाना चाहिए ! राजनीति में चीज़ों का फैसला निजी आग्रहों-पूर्वाग्रहों से करना इतना गलत होता है कि अनैतिक होता है I यह बड़ी तुच्छ बात होती है, नीचता होती है ! अगर मन में तुच्छता लेकर आप कोई बड़ा काम भी करना चाहते हों तो कभी नहीं कर सकते ! यह कोई नसीहत नहीं है, जीवन से सीखा गया पाठ है I एक पिछड़े समाज से आने के चलते भारतीय कम्युनिस्ट भी अक्सर मिजाज़ से जनवादी नहीं होते I मैं भी इसका अपवाद नहीं थी, और अक्सर निजी पसंद-नापसंद और पूर्वाग्रहों को राजनीति से मिला दिया करती थी I फिर जीवन से, सिद्धांत और व्यवहार से शिक्षा मिली और चीज़ों पर संजीदगी से सोचना शुरू किया ! मैं यह तो नहीं कह सकती कि अब पूरी तरह बदल गयी हूँ, पर यह ज़रूर कह सकती हूँ कि क्षुद्रता के अतीत से बहुत दूर निकल आयी हूँ I फिर भी, बेहतरी की ओर यात्रा का कोई अंत तो होता नहीं !

निस्संदेह उसूली मसलों पर मेरी आलोचना की भाषा कटु होती है, पर मेरी चोट उन प्रवृत्तियों पर होती है जो विजातीय हैं, प्रतिगामी हैं ! किसी हमसफ़र साथी को चोट पहुँचाना मेरा मक़सद कभी नहीं होता I हाँ, असुधारणीय अवसरवादी और दुरंगे लोगों से नफ़रत ज़रूर होती है और वह तो होनी ही चाहिए I मेरा मानना है कि हमें विनम्र और उदार तो होना चाहिए, लेकिन उदारतावादी नहीं !
(25जनवरी, 2019)



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मैं कविता में सपाट नारेबाजी और अतिशय कलात्मक , रूपवादी सजावट -- दोनों को बुरी कविता की अभिलाक्षणिकता मानती हूँ I सपाट, नारेबाजी वाली कविता अगर एक फूहड़, गुस्सैल और मूर्ख मुंहफट स्त्री जैसी होती है, तो कलावादी सजावट वाली कविता एक तड़क-भड़क के साथ सजी-धजी बाजारू स्त्री जैसी I कभी-कभी ऐसा भी होता है कि कोई रूपक, बिम्ब या फंतासी कवि के अभीष्ट को पूरीतरह प्रकट नहीं कर पाता, उसके मंतव्य को बाँध नहीं पाता I ऐसी सूरत में भी कविता अनगढ़ और कमजोर हो जाती है I कविता में कन्टेन्ट और फॉर्म के अंतरविरोध जितने कम होंगे और एकता जितनी अधिक होगी, कविता उतनी ही अच्छी बन पड़ेगी I ये दादीजी के नुस्खे तो नहीं हैं, पर मेरी विनम्र राय ज़रूर है !

( मेरी एक पोस्ट पर कमेंट बॉक्स में नेपाली के समालोचक-अनुवादक साथी प्रमोद धीतल ने अच्छी और बुरी कविता में भेद के बारे में मेरे विचार पूछे थे I उनको दिया गया उत्तर स्वतंत्र पोस्ट के रूप में प्रस्तुत है I )
(24जनवरी, 2019)


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