Friday, September 07, 2018

आते-जाते रुककर जिस ठेले पर चाय पीती हूँ...


आते-जाते रुककर जिस ठेले पर चाय पीती हूँ,उन चाय वाले चचा से अक्सर कुछ गपशप भी हो जाया करती है I चचा शेरो-शायरी के भी शौक़ीन हैं और बेहद सलीकेदार इंसान हैं !
एक दिन वे बोले, " बिटिया ! सेब से लदी ठेली के अगर एकाध सेब सड़े निकल जाएँ तो इसमें बाकी सेबों का कोई गुनाह नहीं ! आम तौर पर हम चाय बेचने वाले खुद्दार और मेहनती लोग होते हैं, अपने खून-पसीने की कमाई से बच्चों की परवरिश करते हैं I किसी पर हुकूमत करना, पैसे वालों की दलाली करना, दंगे-फसाद करवाना, व्यभिचार करना --- यह सब हम मेहनत करने वालों के खून में नहीं होता ! ऐसे सपने हम देखते ही नहीं जो लोगों के खून से सने हों !"
चचा ठीक ही कह रहे थे ! हिटलर भी तो पहले रंगसाज़ था, पर सभी रंगसाजों में हिटलर की फ़ितरत थोड़े न होती है ! वे तो खाँटी मेहनतक़श होते हैं ! वैसे इतिहास का सबसे वहशी हत्यारा फासिस्ट हिटलर पियानो भी बजाता था, पर इसमें पियानो का या दूसरे पियानो बजाने वालों का क्या कुसूर? गौरतलब बात यह भी है कि हिटलर पियानो उतना ही घटिया बजाता था, जितनी घटिया आजकल के कुछ चर्चित फासिस्ट कविताएँ लिखते हैं !
(21अगस्‍त,2018)

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