कुछ लोग खुद तो रोज़ाना 9 से 5 सरकारी दफ़्तर में कलम घिसते हैं, और फेसबुक पर अपनी पोस्ट्स में ऐसी अग्निवर्षा करते हैं कि लगता है कि कम्प्यूटर स्क्रीन पर भक्क से आग लग जायेगी I कभी हमें नसीहत देते हैं कि बातों में और प्रचंडता लाओ, कभी कहते हैं कि फेसबुक पर रहने की जगह ज़मीनी काम करके जनता को क्रांति के लिए संगठित करो I अरे भइये, हम ज़मीनी काम फेसबुक पर नहीं ज़मीन पर ही करते हैं, और फेसबुक के बुर्जुआ स्पेस की सीमा समझते हुए ही इसपर कुछ लिखते-पढ़ते हैं, संवाद करते हैं I दो-दो वाक्य की पोस्ट डालकर न तो लेबलबाजी-तोहमतबाजी करते हैं, न ही हवा में अग्निवाण चलाते हैं I हमारी लाइन पर कूपमंडूकतापूर्ण फतवेबाजी या गालियाँ देने की जगह या तो हमारी पत्रिकाओं में लिखित बहस चला लीजिये, या फिर स्थान-समय तय करके आमने-सामने बहस कर लीजिये I और काम करने की नसीहत देने की जगह छुट्टी लेकर आ जाइये, दिल्ली, पंजाब,हरियाणा, यू पी , बिहार, उत्तराखंड, महाराष्ट्र या कहीं भी, हमारे कार्यक्षेत्रों में मज़दूरों और युवाओं के बीच कार्यरत हमारी टीमों के साथ कुछ समय बिताइए I फिर काम के बारे में जो बहुमूल्य सुझाव आप देंगे, हम उसका स्वागत करेंगे I मार्क्सवाद के अपने अज्ञान और कूपमंडूकता को गरमागरम बातों की आड़ में मत छुपाइये I जहां गंभीर सैद्धांतिक बात करनी है वहाँ वह कीजिये, जहां एजिटेशन करना है वहाँ वह कीजिये और जहां मैदान में डट जाना है वहाँ भी पीछे मत रहिये I विनम्र और यथार्थवादी बनिए I ज़िन्दगी घोंसले के कबूतर जैसी और लगातार बाजों को कोसना कि वे आसमान में और ऊंची उड़ान क्यों नहीं भरते -- यह पाखण्ड अश्लील लगता है I हम आपसे कहना चाहते हैं कि विनम्रतापूर्वक थोडा मार्क्सवाद का अध्ययन कीजिये और नसीहत दिए बिना नीद नहीं आती तो खुद थोडा ज़मीनी काम कीजिये I ऐं-वें ही खाली-पीली बूम काय कूँ मारने का ?
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- मेरी प्रिय कविताएं: क्षितिज पर जलती मशालें दण्डद्वीप से दिखती हुई
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Friday, February 09, 2018
कुछ लोग खुद तो रोज़ाना 9 से 5 सरकारी दफ़्तर ......
कुछ लोग खुद तो रोज़ाना 9 से 5 सरकारी दफ़्तर में कलम घिसते हैं, और फेसबुक पर अपनी पोस्ट्स में ऐसी अग्निवर्षा करते हैं कि लगता है कि कम्प्यूटर स्क्रीन पर भक्क से आग लग जायेगी I कभी हमें नसीहत देते हैं कि बातों में और प्रचंडता लाओ, कभी कहते हैं कि फेसबुक पर रहने की जगह ज़मीनी काम करके जनता को क्रांति के लिए संगठित करो I अरे भइये, हम ज़मीनी काम फेसबुक पर नहीं ज़मीन पर ही करते हैं, और फेसबुक के बुर्जुआ स्पेस की सीमा समझते हुए ही इसपर कुछ लिखते-पढ़ते हैं, संवाद करते हैं I दो-दो वाक्य की पोस्ट डालकर न तो लेबलबाजी-तोहमतबाजी करते हैं, न ही हवा में अग्निवाण चलाते हैं I हमारी लाइन पर कूपमंडूकतापूर्ण फतवेबाजी या गालियाँ देने की जगह या तो हमारी पत्रिकाओं में लिखित बहस चला लीजिये, या फिर स्थान-समय तय करके आमने-सामने बहस कर लीजिये I और काम करने की नसीहत देने की जगह छुट्टी लेकर आ जाइये, दिल्ली, पंजाब,हरियाणा, यू पी , बिहार, उत्तराखंड, महाराष्ट्र या कहीं भी, हमारे कार्यक्षेत्रों में मज़दूरों और युवाओं के बीच कार्यरत हमारी टीमों के साथ कुछ समय बिताइए I फिर काम के बारे में जो बहुमूल्य सुझाव आप देंगे, हम उसका स्वागत करेंगे I मार्क्सवाद के अपने अज्ञान और कूपमंडूकता को गरमागरम बातों की आड़ में मत छुपाइये I जहां गंभीर सैद्धांतिक बात करनी है वहाँ वह कीजिये, जहां एजिटेशन करना है वहाँ वह कीजिये और जहां मैदान में डट जाना है वहाँ भी पीछे मत रहिये I विनम्र और यथार्थवादी बनिए I ज़िन्दगी घोंसले के कबूतर जैसी और लगातार बाजों को कोसना कि वे आसमान में और ऊंची उड़ान क्यों नहीं भरते -- यह पाखण्ड अश्लील लगता है I हम आपसे कहना चाहते हैं कि विनम्रतापूर्वक थोडा मार्क्सवाद का अध्ययन कीजिये और नसीहत दिए बिना नीद नहीं आती तो खुद थोडा ज़मीनी काम कीजिये I ऐं-वें ही खाली-पीली बूम काय कूँ मारने का ?
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