नुक्कड़ के सब्ज़ीफ़रोश की तराजू कोई शरारतन चुरा ले गया I कुछ सोचकर वह मोहल्ले में रहने वाले हिन्दी आलोचक के घर तराजू माँगने जा पहुँचा :"भाई साहब, आपसी मदद से यूँ ही काम चलता है I अब तराजू तो तराजू है, चाहे कददू तोलो या कविता ! "
No comments:
Post a Comment