Saturday, October 03, 2015

जारशाही के ज़माने में रूस में हर नागरिक को आन्‍तरिक पासपोर्ट हमेशा रखना होता था, जिसे नहीं पाये जाने पर पुलिस उसे पकड़कर अंदर कर सकती थी। भारत के जार उसी अनुभव को दुहराने के लिए कटिबद्ध दीख रहे हैं। यू.जी.सी. की नयी गाइडलाइन्‍स के मुताबिक, आप अब जब भी कभी किसी विश्‍वविद्यालय में किसी सेमिनार में शामि‍ल होने या किसी से मि‍लने जायेंगे, तो गेट पर आपका पहचान पत्र देखा जायेगा और रजिस्‍टर में आपका नाम-पता दर्ज़ होगा। मतदाता पहचान पत्र बना तो था वोट देने के लिए, पर अब उसे आंतरिक पासपोर्ट बना दिया गया है। अब ऐसा होने वाला है कि घर से सब्‍ज़ी लेने भी जाइये तो पहचान पत्र रखे रहिए, नहीं तो पकड़कर अंदर कर दिये जायेंगे।
भयभीत तानाशाह नौजवानों से सबसे अधिक डरते हैं। तभी विश्‍वविद्यालयों की बाड़ेबन्‍दी की योजना बनाई जा रही है। वहाँ पुलिस थाने खुलेंगे, चारो ओर कँटीले तार लगाये जायेंगे, छात्रावासों में शाम को तय समय पर लौट आना होगा और हाजिरी लगानी होगी, छात्रों को अपना पहचान पत्र गले में पट्टे की तरह डाले रहना होगा, सब ओर सी सी टी वी कैमरे लगे होंगे, तीन से अधिक बाहरी लोग एक साथ कैम्‍पस के भीतर नहीं जा सकेंगे, वगैरह-वगैरह...। विश्‍वविद्यालय जेलखानों के समान होंगे।
मोदी साहब को पता नहीं कि लातिन अमेरिकी देशों में सैनिक तानाशाहों के ज़माने में तमाम ऐसी बन्दिशें छात्रों को सड़कों पर उतरने से रोक नहीं पायी थीं। बन्दिशें तो बग़ावत की आग  में घी डालने का काम करती हैं। अच्‍छा है (नाना पाटेकर स्‍टाइल में)!

No comments:

Post a Comment