Monday, June 22, 2015

अकर्मण्‍यता आत्‍मघती होगी। भगतसिंह की सुनो! मुक्ति की राह चुनो!!

 

यह पूँजीवादी व्‍यवस्‍था ऊपर से नीचे तक सड़ चुकी है और इससे निकलने वाले विषाणु और रोगाणु पूरे समाज को बीमार, बहुत बीमार बना रहे हैं। पूँजीवादी सड़ांध से पैदा हुए हिटलर और मुसोलिनी के वारिस फासिस्‍ट धर्म और जाति के आधार पर जनता को बाँट रहे हैं, नकली राष्‍ट्रभक्ति के उन्‍मादी जुनून में हक की लड़ाई की हर आवाज़ को दबा रहे हैं, धार्मिक अल्‍पसंख्‍यकों को निशाना बनाकर एक नकली लड़ाई से असली लड़ाई को पीछे कर दे रहे हैं। पूँजीपति वर्ग अपने संकटों से निजात पाने के लिए फासिज्‍म को बढ़ावा देता है और जंजीर से बँधे कुत्‍ते की तरह जनता के खिलाफ़ उसका इस्‍तेमाल करना चाहता है, लेकिन जब तब यह कुत्‍ता जंजीर छुड़ा लेता है और समाज में भयंकर खूनी उत्‍पात मचाता है। हमारा देश आज ज्‍वालामुखी के दहाने के एकदम पास खड़ा है।

धार्मिक कट्टरपंथ के विरुद्ध आर-पार की लड़ाई के लिए हमें व्‍यापक मेहनतकश आबादी को संगठित करना होगा। पूँजीवाद विरोधी लग्‍बी लड़ाई का यह फौरी मोर्चा है। भगतसिंह ने आज से लगभग नौ दशक पहले ही स्‍पष्‍ट कहा था कि जनता को आपस में धार्मिक आधार पर लड़ाने की साजिशों से उसे बचाने के लिए उसकी वर्ग चेतना जागृत करनी होगी। साथ ही, उन्‍होंने सच्‍ची आज़ादी के लिए जातिगत भेदभाव के खात्‍में को भी ज़रूरी बताया था। भगतसिंह ने आज़ादी को बहुसंख्‍यक मेहनतकश जनता के शासन और पूँजीवादी शोषण के समूल नाश के रूप में परिभाषित किया था और इसके लिए नौजवानों का आह्वान किया था कि वे क्रांति का संदेश गाँव के ग़रीबों और शहरी मज़दूरों के घर-घर तक पहुँचायें।

भगतसिंह के आह्वान पर अमल ही देश को बचाने का और जनता की मुक्ति का अकेला रास्‍ता है। प्रतीक्षा, अकर्मण्‍यता और किंकर्तव्‍यविमूढ़ता आत्‍मघाती होगी, विनाशकारी होगी।

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