Friday, May 29, 2015

मार्क्‍सवाद के नये ''शिक्षक'' और ''भाष्‍यकार'





किसी भव्‍य नाटक के मंचन के बाद खाली मंच पर उधमी बच्‍चे आकर धमाचौकड़ी मचाने लगते हैं। स्‍वयंभू ज्ञानी, महात्‍वाकांक्षी कूपमण्‍डूक भी ऐसा ही करते हैं। ''मार्क्‍सवाद की पराजय'' के इस शोर में इन दिनों ऐसा ही हो रहा है अकादमिक जगत में। कविता-कहानी करने, चाटूकारिता भरी समीक्षाएँ लिखवाने से मन नहीं भरा तो कई सरकारी मुलाजिम फुरसत काढ़कर इनदिनों मार्क्‍सवाद का क्‍लास लेने लगे हैं और दो-चार किताबें सामने रखकर मार्क्‍सवाद का सरल-सुबोध गुटका(गुटखा) संस्‍करण तैयार करने में मुब्‍ितला हो गये हैं। जाहिर है, उन्‍हें सराहने वालों की कमी भी नहीं है। यूूँ तो लेनिन ने काफी पहले ही आम तौर पर सुबोध पुस्तिकाओं और पाठ्य पुस्‍तको के जरिए अतिसरलीकृत रूप में मार्क्‍सवाद की जानकारी हासिल  करने के प्रति आगाह किया था, लेकिन इन सरकारी मुलाजिमों की मार्क्‍सवादी पाठ्य पुस्‍तकों से तो ख़ुदा ही बचाये! 

हम तो अभी भी युवाओं को सलाह देंगे कि इस ''लुगदी मार्क्‍सवाद'' की जगह सीधे रियाज़ानोव के भाष्‍य सहित 'घोषणापत्र' प‍ढ़ि‍ये, 'समाजवाद:काल्‍पनिक और वैज्ञानिक' (एंगेल्‍स), 'लेनिनवाद के मूल सिद्धान्‍त'(स्‍तालिन), 'अराजकतावाद या समाजवाद'(स्‍तालिन) आदि सरल पुस्‍तकें प‍ढ़‍िये। फिर मॉरिस कार्नफोर्थ की 'रीडर्स' गाइड टु मार्किस्‍ट क्‍लासिक्‍स' के मार्गदर्शन में सिलसिलेवार मार्क्‍सवादी क्‍लासिक्‍स प‍ढ़‍िये। पाठ्य पुस्‍तके पढ़नी ही हों तो मॉरिस काॅर्नफोर्थ की 'द्वंद्वात्‍मक भौतिकवाद' पढ़‍िए, एमिल बर्न्‍स की 'मार्क्‍सवाद क्‍या है' पढ़ि‍ए, राजनीतिक अर्थशास्‍त्र की शंघाई टेक्‍स्‍टबुक प‍ढ़‍िए। ये न भोंड़ी है न एकदम पुरानी पड़ी हैं। मार्क्‍स, लेनिन, स्‍तालिन और माओ की राहुल लिखित जीवनी प‍ढ़‍िए, जेल्‍डा कोट्स लिखित एंगेल्‍स की जीवनी प‍ढ़‍िए। 'बोल्‍शेविक पार्टी का इतिहास पढ़‍िए। यहाँ से शुरुआत कीजिए, आगे राह खुलती जायेगी। अकादमिक अधकचरे मार्क्‍सवादियों के गुटकों से बचिए, वरना दिमाग मार्क्‍सवादी विज्ञान को आत्‍मसात करने के बजाय सड़ा हुआ कद्दू बन जायेगा।

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