--कविता कृष्णपल्लवी
यही अपेक्षित था। गत विधान सभा उप चुनावों ने जैसे ही मोदी लहर में उतार के संकेत दिये, भाजपा ने साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति को आगे बढ़ाने में अपना पूरा जोर लगा दिया। योगी आदित्यनाथ उन तीन नेताओं में शामिल हैं जो उत्तर प्रदेश के आगामी उपचुनावों में भाजपा के प्रचार-अभियान की कमान सँभालेंगे।
हिन्दुत्ववादी फासीवाद के कई फनों वाले नाग ने धुँआधार विष उगलना शुरू कर दिया है। 'लव जेहाद' की अफवाह को खूब हवा दिया जा रहा है और मीडिया भी इसमें भरपूर मदद कर रहा है। आदित्यनाथ ने गर्जना की है कि एक हिन्दू बालिका के धर्मान्तरण के बदले वे सौ मुस्लिम बालिकाओं का धर्मान्तरण करेंगे। उन्होंने यह कहकर प्रकारान्तर से खुलेआम मुसलमानों को धमकी दी है कि 'मेरे एक हाथ में माला है तो दूसरे हाथ में भाला है।' उनका कहना है कि मुसलमानों की संख्या जहाँ दस फीसदी से ज्यादा है वहीं दंगे होते हैं और जहाँ उनकी संख्या 35 फीसदी से ज्यादा है, वहाँ गैर-मुस्लिम एकदम सुरक्षित नहीं हैं। यह हिन्दुत्ववादियों द्वारा प्रस्तुत दंगों का नया जनसंख्या विज्ञान है। जाहिर है कि मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद और सहारनपुर के प्रयोग को पूरे उत्तर प्रदेश में दुहराने की तैयारी जोर-शोर से जारी है।
योगी आदित्यनाथ की 'हिन्दू युवा वाहिनी' पूर्वी उत्तर प्रदेश के 35 जिलों में पहले से ही सक्रिय है। अब वह छोटे-छोटे शहरों-कस्बों और गाँवों तक अपना प्रभाव विस्तार कर रही है। मऊ और आजमगढ़ में साम्प्रदायिक आग भड़काने में योगी की भूमिका सर्वज्ञात है। गोरखपुर में तो उनका आतंक राज चलता ही है। अब मोदी और अमित शाह ने पहली बार पूरे उत्तर प्रदेश के पैमाने पर उग्र हिन्दुत्व का खुला खेल खेलने के लिए योगी को पूरी छूट दे दी है।
उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों पर बुलेट ट्रेन की रफ्तार से अमल कर रही भाजपा सरकार जानती है कि इनसे पैदा होने वाली बेरोजगारी, मँहगाई और चौतरफा तबाही पूरे देश में विस्फोटक जनाक्रोश को जन्म देगी। इसको रोकने के दो कारगर फार्मूले शासक वर्ग के पास है। एक, साम्प्रदायिक आधार पर जनता को बाँटने की राजनीति और दूसरा, अंधराष्ट्रवाद। साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति लाजिमी तौर पर जातिगत ध्रुवीकरण की राजनीति को भी नयी संजीवनी देगी और पूरा देश एक बार फिर मण्डल-कमण्डल के भँवर में उलझकर रह जायेगा। इस प्रक्रिया की शुरुआत हो चुकी है।
अंधराष्ट्रवाद की लहर भी पूरे शबाब पर है। चीन के हौव्वा का खूब प्रचार किया जा रहा है और भारत-पाकिस्तान सीमा पर तनाव बढ़ता जा रहा है। इत्तफाक से, अंधराष्ट्रवाद की उन्मादी लहर की ज़रूरत आज जितनी भारतीय शासक वर्ग को है, उतनी ही पाकिस्तानी शासक वर्ग को भी। पूरा पाकिस्तान आज भीषण अशांति की चपेट में है। इमरान खान और कादरी की पार्टियों के समर्थक नवाज़ शरीफ के इस्तीफे की माँग को लेकर एक पखवारे से इस्लामाबाद में डेरा डाले हुए हैं। सीमा प्रान्त और बलूचिस्तान में पहले से ही गृहयुद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है। पाकिस्तान 'विफल राज्य' का एक उदाहरण बनता जा रहा है। ऐसे में सीमा पर तनाव और अंधराष्ट्रवादी लहर पैदा करके मूल मुद्दों से जनता का ध्यान बँटाना दोनों देशों के शासक वर्गों की ज़रूरत है।
साम्प्रदायिक तनाव और अंधराष्ट्रवादी लहर जैसी स्थिति में राज्यसत्ता को निरंकुश स्वेच्छाचारी बना देना सुगम हो जायेगा और जनता के रहे-सहे जनवादी अधिकारों का भी कोई मतलब नहीं रह जायेगा। रक्षा तैयारियों पर भारी खर्च की आड़ लेकर जनता से मँहगाई बर्दाश्त करने की अपील की जायेगी और जनता पेट काटकर ''देशभक्ति'' की कीमत चुकायेगी।
श्रम कानूनों में सुधार के द्वारा मोदी ने सबसे बड़ा हमला मज़दूरों पर बोला है। ट्रेड यूनियनों का बुर्जुआ और संशोधनवादी नेतृत्व रस्मी विरोध और जुबानी जमाखर्च से अधिक कुछ नहीं कर रहा है। यह ऐतिहासिक गद्दारी करके संशोधनवादी व्यवस्था की दूसरी सुरक्षा पंक्ति की अपनी भूमिका बखूबी निभा रहे है। हिन्दुत्ववादी फासीवाद जंजीर से बँधे कुत्ते की तरह साम्राज्यवाद और देशी पूँजीवाद की सेवा में सन्नद्ध है। आने वाला समय बेहद कठिन, संकटपूर्ण और चुनौतीपूर्ण है। भारत की क्रांतिकारी वाम धारा बिखराव, वैचारिक ठहराव और दिशाहीनता के कारण व्यापक मेहनतक़श जनसमुदाय का संगठित करके शासक वर्ग के हमलों का प्रभावी प्रतिकार कर पाने में फिलहाल विफल है।
इन्हीं दुर्निवार कठिनाइयों-चुनौतियों के बीच नयी क्रांतिकारी तैयारियों के चुनौतीपूर्ण कार्यभार को उठाने के लिए क्रांतिकारियों की नयी पीढ़ी को आगे आना है। अकूत कुर्बानियों भरे साहसिक संघर्षों का समय हमारे सामने है जो भगतसिंह और पूर्वज क्रांतिकारियों के सच्चे वारिसों को ललकार रहा है। जैसा कि भगतसिंह ने कौम के नाम अपने आखिरी संदेश में कहा था, इंकलाबी नौजवानों को संगठित होना होगा और क्रांति का संदेश गाँवों की झोपड़ियों और शहरों की कारखाना बस्तियों तक लेकर जाना होगा। संगठित मेहनतक़शों की क्रांतिकारी शक्ति ही फासीवादी बर्बरता की बाढ़ को पत्थर की दीवार की तरह रोकेगी और नयी जनक्रांति का हरावल बनेगी।
ये जो बुज़दिल, कैरियरवादी, सुविधाभोगी वामपंथी बुद्धिजीवी सांस्कृतिक सोनागाछी की सड़कों पर लाल रुमाल लपेटे छैला बने घूम रहे हैं, कॉफी हाउसों और सांस्कृतिक केन्द्रों पर अड्डे जमा रहे हैं, अनर्गल-अकर्मक बुद्धिविलास और विमर्श कर रहे हैं, जल्दी ही ये सभी झींगुरों की तरह अपने बिलों में चुप्पी साधकर दुबक जायेंगे, कुछ चोला बदल लेंगे, कुछ झोला, कुछ माफीनामे लिखकर कुत्ते की वफादारी के साथ नौकरी करने लगेंगे, कुछ गुप्तचर तंत्र के खबरी बन जायेंगे और जो कुछ हैसियत और पहुँच वाले हैं, वे विदेश उड़ जायेंगे। जेल, फाँसी, कोड़ा तो दूर, सत्ता के राजदण्ड का सपने में भी दर्शन होने पर इन्हें हाजत की ज़रूरत महसूस होने लगती है और जागकर, भागकर ये शौचालय में जा बैठते हैं। जो युवा वास्तव में क्रांतिकारी साहस से लैस हैं और शिद्दत से कुछ कर गुजरने की चाहत रखते हैं, उन्हें सबसे पहले मेहनतक़श और आम घरों के युवाओं को संगठित करना होगा, असंगठित-अर्द्धसंगठित औद्योगिक मज़दूरों को संगठित करना होगा, मेहनतक़श स्त्रियों को संगठित करना होगा और गाँव के गरीबों को संगठित करना होगा।
फासीवादी उभार के विरुद्ध रक्षात्मक तैयारी के फौरी कार्यभार के साथ हमें भारतीय क्रांति के हरावल दस्ते के निर्माण तथा जनता के विभिन्न हिस्सों को ज़मीनी स्तर पर संगठित करने के दूरगामी कार्यभार में भी अभी से, लगातार, ज्यादा से ज्यादा व्यापक एवं सघन रूप में समय और ऊर्जा लगानी होगी। हमारी शिथिलता, गैर जिम्मेदारी और लापरवाही के लिए न तो इतिहास हमें माफ करेगा, न ही शत्रु हमें बख़्शेगा।
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