Wednesday, August 13, 2014

न्‍याय की देवी अंधी नहीं होती!



-- कविता कृष्‍णपल्‍लवी

न्‍याय की देवी अंधी नहीं होती, अंधेपन का दिखावा करती है। उसकी आँखों पर बँधी काली  पट्टी पारदर्शी मलमल की होती है, जिसके पीछे से वह मुद्दई और मुद्दाअलैह की सामाजिक हैसियत को देखकर अपने तराजू पर इंसाफ को तोलती है। दिल्‍ली में एक ई.रिक्‍शा से हुई दुर्घटना में एक बच्‍चे की दर्दनाक मौत के बाद हाई कोर्ट ने कलम की एक ही मार से दो लाख ग़रीब ई.रिक्‍शा चालकों को बेरोज़गार कर दिया। सड़क पर अव्‍यवस्‍था फैलाने के तर्क के आधार पर यह फैसला दिया गया। दिल्‍ली की सड़कों पर सबसे अधिक जंगल की अराजकता तो लाखों निजी कार वालों ने फैला रखी है, वे हमेशा ही धन और दारू के नशे में चूर दुर्घटनाएँ करते रहते हैं। फिर दिल्‍ली की सड़कों पर निजी कारों का चलना तो नहीं रोका जाता!
सवाल यह है कि ई.रिक्‍शा के प्रचालन के नियमन की और उनके पंजीकरण की व्‍यवस्‍था आर.टी.ओ.ने पहले ही क्‍यों नहीं की? ब्‍याज पर कर्ज लेकर और उधार जुटाकर जिन दो लाख ग़रीबों ने ई.रिक्‍शा ख़रीदे, वे अब क्‍या करें? कैसे पेट पालें और कैसे कर्जा भरें? जबतक ई.रिक्‍शा के प्रचालन नियमन की व्‍यवस्‍था बनेगी, तबतक ई.रिक्‍शा चालकों के भरण-पोषण का पूरा खर्च उठाना क्‍या दिल्‍ली प्रशासन की जिम्‍मेदारी नहीं है, जिसके अंतर्गत आर.टी.ओ. आता है? क्‍या ई.रिक्‍शा प्रचालन सम्‍बन्‍धी नियम पहले से ही नहीं बनाने के लिए दिल्‍ली सरकार और प्रशासन पर भारी जुर्माना नहीं ठोंका जाना चाहिए था? क्‍या ई.रिक्‍शा से हुए हादसे में अपना बच्‍चा खोने वाली महिला को मुआवज़ा देने का आदेश हाई कोर्ट द्वारा दिल्‍ली सरकार को नहीं दिया जाना चाहिए था? दो लाख ई.रिक्‍शा चालकों को किस गुनाह के चलते भूखों मरने और अपराधी बनने की सज़ा सुनाई गयी है? असली अपराधी तो सरकार और प्रशासन है! हे न्‍याय की देवी, तुम अंधी नहीं हो, बस अंधी होने का दिखावा करती हो!

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