गूंगी
बहरी सरकार, लचर
कानून व्यवस्था, बेखौफ
अपराधी
एक महिला सामाजिक कार्यकर्ता की शिकायत पर चार
दिन बाद भी कार्रवाई नहीं
- कविता
दिसंबर के गैंगरेप की बर्बर घटना के बाद
उमड़े जनआक्रोश के बावजूद पुलिस और सरकारी मशीनरी पुराने ढर्रे पर चल रही है। बीती
एक जनवरी से ही कोई बीमार मस्तिष्क का पुरुष स्त्री मुक्ति लीग के फोन नंबर (जो गैंगरेप
की घटना को लेकर लीग की ओर से निकाले गए पर्चे पर छपा है) पर फ़ोन करके लगातार
धमकियां,
गाली-गलौच और निहायत अश्लील बातें कर रहा है। लेकिन पुलिस अब तक उस मानसिक
रोगी को ढूंढ़ने में नाकाम रही है, और टालू रवैया अपना रही है। एक तारीख को ही तमाम हेल्पलाइनों, दिल्ली पुलिस के पीआरओ, आदि को फोन करने के बाद
स्थानीय थाने के एक पुलिसकर्मी ने आकर बयान तो दर्ज किया, लेकिन अब बार-बार पूछने पर वह पुलिसकर्मी केवल यह कह रहा है कि
हमारे पास कॉल डीटेल आ गयी हैं लेकिन फोन कौन कर रहा है यह मालूम नहीं चल पा रहा है।
यह कहने पर वह मीटिंग या कोर्ट में होने की बात करके फोन रख देते हैं कि जब एक महिला
सामाजिक कार्यकर्ता और स्वतंत्र पत्रकार को इस तरह तंग किए जाने पर आप कोई कार्रवाई
नहीं कर रहे हैं, तो आम महिलाओं की सुनवाई
कहां होगी! उधर, उस व्यक्ति की हिम्मत
इतनी बढ़ती जा रही है आज 4 जनवरी की को देर रात तक उसका फोन लगातार आ रहा है।
दरअसल, पिछले कुछ दिनों से स्त्री मुक्ति लीग की
ओर से हम कई साथी दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में इस घटना को लेकर प्रदर्शन,
सभाएं और पर्चे बांटने का काम कर रहे हैं। इसी से बौखलाए एक बीमार मस्तिष्क का
पुरुष एक जनवरी की शाम से स्त्री मुक्ति लीग के फोन नंबर पर फ़ोन करके लगातार गाली-गलौच
और अश्लील बातें कर रहा है। उसने सीधे यह भी कहा कि मैं तुम सब लड़कियों को
पहचानता हूं और तुम लोग मुझसे बच नहीं सकतीं। मैं तुम्हारा वह हाल करूंगा कि लोग
दहल जाएंगे। और भी ऐसी बातें जो दोहराई नहीं जा सकतीं.... जब हम लड़ने के लिए सड़क
पर उतरे हैं तो ऐसी धमकियों से डरने का तो सवाल नहीं है, लेकिन
दिल्ली पुलिस का बर्ताव हमारे लिए ''शॉकिंग''
है। मैं संक्षेप में तथ्यों का ब्योरा नीचे दे रही हूं।
1 जनवरी की शाम 6:46 मिनट से 8505898894
नंबर से मुझे फ़ोन आया जिसने फ़ोन उठाते ही बेहद भद्दी ज़बान में गालियां बकना और
धमकाना शुरू कर दिया। एक बार काट देने के बाद उसने फिर फ़ोन करके और भी घटिया
धमकियां देनी शुरू कर दीं। यह सिलसिला 2-2,
3-3 मिनट के अंतर से रात के 1:08 बजे तक चलता रहा। बीच में हम लोगों ने उसे फ़ोन
करने की कोशिश की लेकिन उसने फ़ोन काट दिया। एक बार 8:46 मिनट पर जब उसने फ़ोन
किया तो मैंने उससे कहा कि हम लोगों ने पुलिस में शिकायत की है और तुम्हारा नंबर
ट्रेस किया जा रहा है। इतना सुनते ही उसने फिर गाली-गलौच शुरू कर दी और उसके बाद
भी देर रात तक उसके फ़ोन आने का सिलसिला जारी रहा।
हेल्पलाइनों की हेल्पलेसनेस !
कई बार कोशिश करने के बाद आखिरकार दिल्ली
पुलिस की नई हेल्पलाइन 181 से रात 9:03 बजे संपर्क हुआ। वहां बैठे किसी पुरुष
कर्मचारी ने बताया कि आपकी शिकायत दर्ज कर ली गई है लेकिन हम अभी शिकायत नंबर नहीं
दे सकते,
उसके लिए आपको कल दिन में 12 बजे संपर्क करना होगा। फिर उसने एक दूसरा नंबर
27891666 और 1096 देकर कहा कि शिकायत नंबर चाहिए तो इन पर फ़ोन कर लीजिए। 1096
(अश्लील कॉल तथा पीछा करने संबंधी हेल्पलाइन) को दर्जनों बार फ़ोन करने पर भी 'इनवैलिड
नंबर'
बताया जाता रहा। रात 9:11 पर 27891666 पर शिकायत दर्ज करके नंबर दिया गया - 36A-1.
उसके बाद भी 8505898894 नंबर से लगातार आती फ़ोन कॉल्स से तंग आकर मैंने
181 पर फिर फोन करने की कोशिश की - एक बार फोन उठाया गया लेकिन पूरी बात सुने बिना
काट दिया गया। उसके बाद मैं रात तक कई बार 181 पर फोन करने की कोशिश करती रही
लेकिन किसी ने उठाया ही नहीं।
2 तारीख की सुबह सुबह 9:17 और 9:18 मिनट पर
फिर 181 को ट्राई किया लेकिन वही 'नो
रिस्पांस'! आखिरकार सुबह 9:30 पर दिल्ली पुलिस के मुख्य
जनसंपर्क अधिकारी राजन भगत को उनके मोबाइल नंबर पर कॉल करके सारी घटना की जानकारी
दी और शिकायत नंबर बताया। मैंने बताया कि मैं एक सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार
हूं,
तो उन्होंने कहा कि पहले आप 1096 पर शिकायत दर्ज कराके मुझे उसका नंबर दीजिए।
मैंने फिर तीन अलग-अलग नंबरों से 1096 नंबर पर ट्राई किया लेकिन हर बार वही 'इनवैलिड
नंबर'
बताया जाता रहा। राजन भगत को जब इसकी जानकारी दी तो उन्होंने लगभग झिड़कते हुए
कहा कि ऐसा हो नहीं सकता। मैंने कहा कि आपके पास एक शिकायत पहले से दर्ज है आप उस
पर तो कार्रवाई कर सकते हैं। इस पर उन्होंने फोन काट दिया।
फिर मैंने दिल्ली पुलिस की वेबसाइट से 1096
का वैकल्पिक नंबर 27894455 लेकर उसपर कॉल किया तो उसी महिला पुलिसकर्मी से बात हुई
जिस पर कल 181 से दिए गए नंबर पर बात हुई। उसने बताया कि नंबर ट्रेस करने की
प्रक्रिया में 2-3 दिन लग सकते हैं क्योंकि हम कंपनी को ईमेल भेजते हैं फिर उधर
से जानकारी मिलने में समय लगता है आदि-आदि। उसने यह भी कहा कि ज़्यादातर लोगों को
तो हम लोग धमका देते हैं तो वे फ़ोन करना बंद कर देते हैं लेकिन कुछ बेहद ''कमीने''
और ''रेयर'' किस्म
के बदमाश होते हैं ये भी उन्हीं में से एक लग रहा है।
बाद में उस महिला पुलिसकर्मी ने स्थानीय थाने में फोन ट्रांसफर
कर दिया, जहां मेरी शिकायत पर एक पुलिसकर्मी दोपहर को बयान दर्ज करने पहुंचा।
बयान दर्ज करने पहुंचा पुलिसकर्मी इस मामले को लेकर कितना गंभीर था, यह इससे पता चलता है कि उसके पास बयान की कार्बन-कॉपी देने के लिए
कार्बन पेपर ही नहीं था। और जब हमने कहा कि आप इसकी एक प्रति अपने हस्ताक्षर करके
हमें दीजिए तो उसने यह कहकर टाल दिया कि आपका बयान तो दर्ज हो ही गया है आप चिंता मत
करो हम तुरंत कार्रवाई करेंगे, या कॉपी चाहिए तो इसकी
फोटोकॉपी करा लाओ। फिर उसने आश्वासन दिया कि कल तक फोन करने वाले का पता चल जाएगा, लेकिन अगले दिन फोन करके पूछने के बाद से अब तक वह आश्वासन पर
आश्वासन दिए जा रहे हैं या मामले को टाल रहे हैं। उनका कहना है कि कॉल डीटेल्स तो
मिल गए हैं, लेकिन फोन करने वाले का पता नहीं चल पा रहा है। इधर, वह आदमी
लगातार मुझे फोन करके धमका रहा है।
मैंने राजन भगत, उस महिला कर्मी और बयान दर्ज
करने वाले पुलिसकर्मी
को भी बताने की कोशिश की कि जो व्यक्ति इस तरह से धमकियां दे रहा है वह किसी भी
घृणित किस्म की प्रतिशोधी हरकत भी कर सकता है,
क्या आप लोग तब कार्रवाई करेंगे जब कुछ हो जाएगा? स्त्री
मुक्ति लीग की ओर से हम लोग रोज़ सड़कों पर निकल रहे हैं,
उस व्यक्ति ने कहा है कि वह हमें पहचानता है और सीधे धमकियां दे रहा है। मगर वे बस
आश्वासन दिए जा रहे हैं।
हम जानना चाहते हैं कि दामिनी की शहादत के
बाद अगर यही दिल्ली पुलिस की सक्रियता का आलम है तो कोई भी स्त्री दिल्ली में
अपने को कैसे सुरक्षित महसूस कर सकती है? घड़ियाली
आंसू टपकाने वाली सोनिया गांधी से लेकर शीला दीक्षित तक को क्या अपनी मशीनरी की
इस असलियत के बारे में पता भी है - जहां बर्बर, घिनौनी
मानसिकता वाले मर्दरूपी जानवर बेख़ौफ़ घूम रहे हैं और स्त्रियां अपनी शिकायत भी
दर्ज नहीं करा सकतीं, किसी
तरह शिकायत दर्ज हो भी जाए तो उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती।
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कविता
स्त्री
मुक्ति लीग
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