वामपंथी चिन्तक कॉमरेड इस बार मिले तो उनके चेहरे पर 'बोधिज्ञान प्राप्ति' का भाव था।
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बोले, ''मज़दूर वर्ग अपनी राजनीति खुद करेगा, अपना नेतृत्व खुद पैदा करेगा। वामपंथी बुद्धिजीवी उसे विचार देने के नाम पर जाता है और नेतृत्व हथियाकर बैठ जाता है।''
मैंने निवेदन किया, ''लेकिन कॉमरेड, मज़दूर आन्दोलन में वैज्ञानिक विचारधारा तो, जैसा कि लेनिन ने कहा था, बाहर से ही डालनी होती है। आगे चलकर मज़दूर वर्ग भी अपना 'आर्गेनिक बुद्धिजीवी' पैदा कर लेगा, पर शुरू में तो पेटी-बुर्जुआ बौद्धिक पृष्ठभूमि से आकर मार्क्सवाद के सिद्धान्त-व्यवहार में स्वीकार करने वालों की एक भूमिका होगी ही।''
वामपंथी चिन्तक जी गरम हो गये। वे बोले, ''यही तो! यही तो प्रॉब्लम है! क्रान्ति के पहले हरावल दस्ता मज़दूर को पिछलग्गू बना देता है। क्रान्ति के बाद सर्वहारा अधिनायकत्व के नाम पर वह पार्टी अधिनायकत्व लागू कर देता है! सर्वहारा वर्ग को आगे लाना होगा!''
मैंने शंका प्रकट की, ''बिना विचारधारात्मक-राजनीतिक शिक्षा के, आर्थिक संघर्ष करते-करते मज़दूर वर्ग स्वयं अपना दृष्टिसम्पन्न नेतृत्व पैदा कर ले, क्रान्ति कर ले और समाजवादी निर्माण भी कर ले, क्या यह सम्भव है? मार्क्सवाद ने तो हमेशा ही स्वत:स्फूर्ततावाद का विरोध किया है। सोवियत संघ में 'वर्कर्स अपोजीशन' वाले जब शासन के महत्वपूर्ण कामों को ट्रेड यूनियनों को सौंपने की बात कर रहे थे, तो लेनिन ने भी तो मज़दूर वर्ग के व्यवहार में सीखने की लम्बी प्रक्रिया जारी रहने तक प्रत्यक्ष शासन में पार्टी की भूमिका को रेखांकित किया था! और फिर पार्टी अपने आप में क्या है? - मज़दूर वर्ग का अग्रिम दस्ता ही तो है!''
कॉमरेड ने हाथ और दाढ़ी हिलाते हुए मेरी सारी बातों को सिरे से खारिज कर दिया, ''नहीं, नहीं, इन सभी चीज़ों पर नये सिरे से सोचना होगा। पार्टी से अलग मज़दूरों के जन राजनीतिक संगठन भी बनाने होंगे।''
मैंने कहा, ''आप लेनिन से अधिक मातिक और पान्नेकोएक आदि 'कौंसिल कम्युनिस्टों' जैसी बात कर रहे हैं। और अक्सेलरोद वगैरह भी तो जब मज़दूरों के ग़ैरपार्टी संगठन बनाने की बात कर रहे थे तो लेनिन ने इस 'ग़ैरपार्टी क्रान्तिवाद' का विरोध किया था। माओ त्से तुंड. और चीनी पार्टी ने समाजवाद की समस्याओं और पूँजीवादी पुनर्स्थापना का जो सार-संकलन किया था, क्या आप उससे अलग कुछ नतीज़े निकाल रहे हैं?''
''एकदम अलग तो नहीं, पर सोचना होगा, सारी चीज़ों पर सोचना होगा!''
मैंने कहा, ''आप आजकल शायद जिज़ेक और अलेन बेद्यू को पढ़ रहे हैं! आपकी बातों से ऐसी गंध आ रही है। वे भी तो पार्टी की लेनिनवादी अवधारणा और सर्वहारा अधिनायकत्व पर ही सवाल उठ रहे हैं!
कॉमरेड भड़क उठे, ''लेबल मत चस्पां करो। हमारा चिन्तन मौलिक है।''
मैंने बात हल्की करने की कोशिश की, ''कॉमरेड, जब मज़दूर वर्ग सब खुद ही कर लेगा, तो आप क्या करेंगे?''
कॉमरेड ने समझाया, ''हॉं! यही समझने की बात है। हमारा काम आन्दोलनरत मज़दूर के साथ रहकर, बस विनम्रता से उसे सुझाव देना है, बाक़ी जो वह तय करेगा, ठीक होगा। वह स्वयं अनुभव से सीखेगा। क्रान्ति के बाद भी समाजवाद चलाने का काम मज़दूर प्रतिनिधियों को सौंपकर पार्टी को बस विचारधारात्मक मार्गदर्शक बन जाना होगा! जहाँ तक अभी का बात है, मार्क्सवाद संकट में है, हमारा काम उस संकट को हल करना है। प्रकृति विज्ञान में विकास यदि रुका रहेगा तो मार्क्सवाद भी संकट में रहेगा। प्रकृति विज्ञान में जब नया विकास होगा तो उसकी व्याख्या करते हुए मार्क्सवाद आगे जायेगा।''
मैं चकरा गयी। कॉमरेड के सैद्धान्तिक कामों का दायरा तो बहुत विशाल हो गया था। अब उन्हें प्रकृति विज्ञान में भी काम करना था और प्रकृति विज्ञान की खोजों की मार्क्सवादी व्याख्या भी करनी थी और इस ज्ञान सम्पदा से लैस होकर मज़दूर वर्ग को राय-परामर्श भी देना था।
इतने अधिक कामों का कॉमरेड को अहसास था। सहसा वे झपटते हुए उठे और झोला उठाकर निकल पड़े।
बाहर निकलकर मैंने देखा, कॉमरेड स्वत:स्फूर्ततावाद और विसर्जनवाद की ढलान पर तेजी से उतरते हुए चले जा रहे थे।
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