स्त्री की अपनी जगह कई बार उसके अपने अकेलेपन में सुरक्षित होती है। यह अकेलापन सामाजिकता का निषेध नहीं है। यह सोचने और सर्जनात्मकता की ज़रूरत होती है और अपने निजी दु:खों - उदासियों के बीच आने - जाने के लिए होता है। यह उसका प्राइवेसी का स्पेस होता है।
लेकिन यह मिलता ही कहां है! इस स्पेस में घुसपैठ, ताकझांक और दख़लंदाजी के बहाने तो लोगों को मिलते ही रहते हैं!
shi kha!
ReplyDelete