यानी 'लेट नाइट रागाज़', जो किसी को नींद के आगोश में ले जाते हैं, किसी की नींद उचाट सकते है और किसी को उनींदेपन से भर सकते हैं। सुनने का अपना-अपना सलीका है और संगीत की अपनी-अपनी समझ। देर रात के रागों को सुनते हुए कोई कॉफी लेकर खिड़की पर बैठा रात के ढलने की प्रतीक्षा करता है तो कोई जीवन की किसी न किसी नयी लय का संधान करता है।
आज के समय में विचार -- जिनमें जीवन की लय है, सपनों के सुर हैं, स्मृतियों के ताल हैं -- वे देर रात के रागों के समान हैं जो भोर की उजास का आह्वान करते हुए आसपास के सन्नाटे को तोड़ते रहते हैं।
इसलिए विचारों, संवेदनाओं-भावनाओं के इस कोने का नाम मैंने 'देर रात के राग' रखा है।
12 मार्च, 2010
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