Wednesday, October 09, 2019


अक्सर ज़िंदगी की सुविधाएँ और सुरक्षाएँ हमें काहिल,कायर, स्वार्थी और समझौतापरस्त बना देती हैं, केंचुआ की तरह रीढ़विहीन बना देती हैं, और फिर धूर्त, कमीना और बेशर्म भी बना देती हैं !

फासिज्म की काली आँधी अपने असली रंग में आती जा रही है ! जो भी इसके ख़िलाफ़ तनकर खड़ा होने और हर कीमत चुकाने के लिए तैयार हैं, हम उन्हें दिल से सलाम करते हैं ! ये जो राजधानियों के साहित्य-कला के उत्सवों और मेलों में विहार करते बौद्धिक रसिक जन हैं, जो विभिन्न आयोजनों में हत्यारी फासिस्ट पार्टी भाजपा के मंत्रियों-नेताओं के साथ मंचासीन होते और झुककर, दांत चियारकर उनका अभिवादन करते लेखक-गण हैं, ये जो म.प्र. में कांग्रेस की सरकार आते ही छत्तीसगढ़ के आदिवासियों पर जारी बघेल सरकार के कहर को भूलकर भोपाल की तीर्थयात्रा करते और पुरस्कृत-सम्मानित होते कथित सेक्युलर और प्रगतिशील महामहिम हैं, ये सभी के सभी कठिन समय में माँदों में दुबक जायेंगे, झुकने को कहने पर रेंगने लगेंगे I

ज़रूरत एक लम्बे संघर्ष की तैयारी के लिए सड़कों पर उतरने की है I ज़रूरत आम मेहनतक़श अवाम को जागृत, शिक्षित, एकजुट और संगठित करने की अनवरत, अहर्निश कोशिशों में लग जाने की है ! यह समय का आसन्न तकाजा है कि कवि-लेखक-कलाकार विविध रचनात्मक-सांस्कृतिक-शैक्षिक कार्यक्रमों के जरिये गाँवों-शहरों के आम मेहनतक़श गरीबों की झुग्गी-झोंपड़ियों तक जाएँ और उनके भीतर जाति-धर्म की राजनीति और धार्मिक कट्टरपंथी फासिज्म के विरुद्ध राजनीतिक चेतना पैदा करने में लग जाएँ ! हमें इन तरीकों से फासिस्टों के प्रचार एवं शिक्षा के ज़मीनी नेटवर्क का मुकाबला करना होगा !

आप संगीत की मधुर स्वर-लहरियों पर पी जाने वाली सुबह की चाय, दोपहर की नींद और शाम की महफ़िलों से समय निकालिए और आस-पास की मज़दूर बस्तियों में जाइए ! वहाँ अपने मित्रों और मज़दूरों की मदद से चलता-फिरता या स्थायी जगह वाला पुस्तकालय-वाचनालय बनाइये, सांस्कृतिक आयोजनों को बच्चों, युवाओं और नागरिकों की शिक्षा का माध्यम बनाइये, खेलकूद क्लब बनाइये, शहीदों की जयंतियों पर आयोजन कीजिए, कोर्स की पढ़ाई-लिखाई में मज़दूरों की बच्चों की मदद के लिए अंशकालिक पाठशालाएँ लगाइए, स्त्री मज़दूरों और अन्य मज़दूरों के लिए रात्रि-पाठशालाएँ लगाइए, मज़दूरों को उनके अधिकारों के बारे में और पतित-निठल्ली ट्रेड यूनियनों के बरक्स नए सिरे से जुझारू मज़दूर आन्दोलन खड़ा करने के रास्तों के बारे में बताइये, रूढ़ियों, अंधविश्वास और जाति-व्यवस्था तथा धर्मान्धता के विरुद्ध ज़मीनी तौर पर एक जुझारू सामाजिक आन्दोलन खड़ा करने के लिए शिक्षा एवं प्रचार का काम कीजिए !

अगर आप सच्चे दिल से एक वाम, जनवादी, प्रगतिशील और सेक्युलर विचारों के व्यक्ति हैं, तो आपको यह करना ही होगा ! वक्तृता और लेखन से वाम प्रतिबद्धता का दम भरने वाला व्यक्ति अगर आरामतलब, सुविधाभोगी, कैरियरवादी, कायर और सत्ता से नैकट्य का आकांक्षी हो, तो उससे घृणित और कमीना और कोई नहीं होता ! आम लोगों के बीच जाइए, अपने अलगाव को समाप्त कीजिए, ह्रदय तब स्वतः अभय हो जाएगा !

फासिज्म के विरुद्ध बीसवीं शताब्दी जैसी ही विकट और बीहड़ लड़ाई सर पर है ! याद रखिये, अकेले भारत की आबादी पूरे यूरोप से लगभग दूनी है, और संघ एक नव-क्लासिकी ढंग की फासिस्ट पार्टी है ! यह भी याद रखिये कि विश्वपूँजीवाद के असाध्य ढाँचागत संकट के इस दौर में फासिज्म का उभार और पूँजीवादी जनवाद का क्षरण-विघटन एक 'ग्लोबल ट्रेंड' है !

इतिहास के इस दौर में फिलहाल क्रान्ति की लहर पर उलटाव और प्रतिक्रान्ति की लहर हावी है ! बेशक यह निराशा, विभ्रम, ठहराव-बिखराव का दौर है ! पर यह दौर स्थायी नहीं है ! छोटे-छोटे प्रयासों और उद्यमों की कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए प्रतिरोध की अप्रतिरोध्य शक्ति तैयार की जा सकती है !

माना कि हम अपने काम में काफी पीछे हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि पहले से ही हार मान लें ! पहले से ही हार मान लेने और हथियार डाल देने का मतलब होगा सभ्यता और मनुष्यता के विनाश पर अपने हाथों मुहर लगा देना ! फासिस्टों और निरंकुश बुर्जुआ सत्ताओं को अगर अपना खेल खेलने के लिए खुल्ला छोड़ दिया जाएगा तो वे नरसंहारों, दंगों, युद्धों और पर्यावरण-विनाश के द्वारा मनुष्यता को ही तबाह कर देंगे ! इसलिए, लड़ना तो होगा ही ! और कोई विकल्प नहीं है ! अपने तईं कुछ पहल तो लीजिये, कुछ छोटी-छोटी शुरुआतें तो कीजिए ! एक बड़ी शुरुआत की ज़मीन खुद ही तैयार होने लगेगी !

(7अक्‍टूबर, 2019)

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