Monday, October 08, 2018

गोरखपुर लिट् फेस्‍ट....



गोरखपुर गुरु गोरखनाथ से लेकर प्रेमचंद, फ़िराक और कई जाने-माने साहित्यकारों और चिन्तकों की धरती रही है ! यहाँ से कुछ ही दूर कबीर की निर्वाण-स्थली मगहर और बुद्ध की निर्वाण-स्थली कुशीनगर हैं ! यहाँ की प्रगतिशील-साहित्यिक सरगर्मियाँ 1960 से लेकर 1980 के दशक तक बड़े-बड़े महानगरों को मात देती थीं I अब इस शहर के साहित्यिक-सांस्कृतिक परिदृश्य पर गुनाहों के देवताओं, पतन के मसीहाओं और सत्ता-संस्कृति के भाँड़-भंडुक्कों ने धुमगज्जर मचा रखा है ! पूरा समाज ही यदि फासीवाद की नर्सरी बना हुआ हो तो संस्कृति की मंडी में दलालों, चारणों, दरबारियों और कमीशन-एजेंटों की यह धकापेल ज़रा भी अप्रत्याशित नहीं है।
इनदिनों गोरखपुर में भी जयपुर की तर्ज़ पर कुछ महत्वाकांक्षी सत्तासेवी, सेठाश्रिताकांक्षी, एन.जी.ओ.पंथी मनबढ़ों ने 'गोरखपुर लिट् फेस्ट' का आयोजन किया है। यानी पूँजी और सत्ता-संस्कृति की दुनिया में मेंढकियाँ भी नाल ठुका रही हैं ! अब जाहिर है कि इस 'लिट् फेस्ट' में अपने अकादमी वाले पंडीजी ( जो अब भूतपूर्व हो चुके हैं ) यानी विप्र तिवारीजी को होना ही था और साहित्य की महिमा के बारे में कुछ आध्यात्मिक सद्विचार सुनाना ही था I आखिर वे इस बात को कैसे भूल सकते हैं कि एक दो कौड़ी के कवि-सम्पादक को साहित्य और सत्ता के महामहिमों की चरण-चम्पी ने कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया ! दूसरे, इसमें हिंदुत्ववाद के साथ मधु-यामिनी मनाकर सत्ता-तृप्ति हासिल करने वाले समाजवादी बौद्धिक गिरोह के सरगना पत्रकार और नीतीश कुमार के खासुलखास और राज्यसभा के उपाध्यक्ष के रूप में स्वर्ग-सुख भोगने वाले हरिवंश भी पहुँचे थे। और सावधान हो जाइए, कहीं हँसते-हँसते आप मर ही न जाएँ ! इस आयोजन में सत्ता के गलियारों में एक ज़माने से कुख्यात पूंजीपतियों के कामों के लिए चक्कर लगाते रहने वाले और फ़िल्मी दुनिया की "सात्विकता" में सराबोर रहने वाले अमर सिंह ने लेखकों-बुद्धिजीवियों को नैतिकता और सामाजिक प्रतिबद्धता का पाठ पढ़ाया I इसमें पुराने समाजवादी और शिक्षक नेता चित्तरंजन मिश्र ने भी बताया कि साहित्य के जरिये एक ख़राब आदमी भी अच्छा बन जाने की इच्छा रखता है ( अच्छा !! यही सोचकर शायद विप्र पंडीजी साहित्य की दुनिया में उतारे थे, पर वे तो घटिया से घटिया होते चले गए !) चित्तरंजनजी भी ऐसे समाजवादी हैं जो समाजवाद का जनेऊ कान पर चढ़ाई विप्र तिवारी का पोंछिटा पकड़कर फासिस्टों के मसानघाट से लेकर मूल्यहीनता के कुम्भीपाक नरक तक जा सकते हैं।
और जाहिर है कि इस गोरखपुरिया ठगों के साहित्यिक कुम्भ में पुराने संघी प्रोफ़ेसर सदानंद गुप्त को होना ही था जिनने बताया कि साहित्य दिल के रकबे को चौड़ा करता है और मनुष्यता के व्यापक पद से परिचित कराता है ! अब यह तो हम सभी जानते हैं कि नागपुरिया संतरों का दिल का रकबा कितना चौड़ा होता है और गुजरात-2002 से लेकर दाभोलकर-पानसारे-कलबुर्गी-गौरी लंकेश तथा अखलाक-जुनैद आदि के मामलों में संघियों ने मनुष्यता के पद से कैसे परिचित कराया था ! सोने में सुहागा के तौर पर इस आयोजन में धुर-दक्षिणपंथी कश्मीरी पण्डित बुद्धिजीवी सुशील पण्डित भी मौजूद थे जो कश्मीरी पंडितों के विस्थापन और घाटी में आतंकवाद के मसले को उठाते हुए हमेशा प्रकारांतर से कश्मीर में भारतीय राज्यसत्ता के बर्बर दमन को उचित ठहराते रहते हैं !
कहने को तो यह 'लिट् फेस्ट' था' पर इसमें पत्रकार के रूप में प्रभार रंजन दीन से लेकर राणा यशवंत तक जो विभूतियाँ मौजूद थीं, उनके बारे में कुछ कहना, उनकी साहित्यिक प्रतिभा और साहित्यिक अवदानों के बारे में कुछ भी बताना तो सूरज को दीपक दिखाने के सामान ही होगा I और तो और, इन सबके बीच लेखिका नासिरा शर्मा भी पहुँची हुई थीं ! सचमुच, मंच पर बिराजने, मुखड़ा दिखने और सम्मान पाने के लिए ये लेखक-लेखिका तो एकदम बौराए-पगलाए रहते हैं !
हमेशा हम सोचते हैं कि साहित्य की दुनिया में यह तो पतन की पराकाष्ठा और विदूषकीय प्रहसन का चरम है ! लेकिन उस कीर्तिमान को जल्दी ही टूटना होता है ! यह नीचता के नित-नए कीर्तिमानों के निर्माण का युग है !
(8अक्‍टूबर,2018)

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