Tuesday, October 16, 2018


हिन्दी साहित्य में रीतिकाल बीता, छायाबाद बीता, नवगीत का रोमानी मौसम भी कबहूँ का चला गया, बाकिर केतना-केतना कबी-लेखक-सम्पादक लोगिन का बेवहार में अबहिनों रीतियेकाल जारी है I लेखिका-कबित्री अगर औरत जात से हुई त उनका छाया परते मौसमे बदल जाता है, एकदम मधुमासे त आ जाता है ! ऊ धाय के आता है आ सम्पादक/लेखक/कबीजी के अंखिये में ढुक जाता है, उमिर का कवनो तकाजा भी नहीं देखता मुँहझौंसा ! अब प्रातःस्मरनीय रजिंदर जादवजी तो रहे नहीं, मगर बहुते तजुरबाकार लोग हैं जो चाहें त इस बाबत बहुत कुछ बता सकित हैं I मगर आपन माटी पलीत कवन कराएगा ?

अब हमको ई उमीद त एकदम्मे नाहीं है कि हिन्दी क कवनो लेखिका-कबित्री 'मीटू-वीटू' में मुँह खोलेगी I पानी में रहके मगर से दुश्मनी ? ना भाइ ना, करियर का सवाल है ! छपना, आलोचना-समिच्छा करवाना, इनाम-वजीफा पाना --- सबकुछ खटाई में न पड़ जाएगा ! हँ, कुछ अइसन भी होइंत हैं जो तुरंते पूजा-पाठ करके निपटाय देंइत हैं I अब ई बात दीगर है कि अइसन जोखिम लेवे वालिन कम्मे हैं, बहुते कम हैं !

हँ, आप सभे तो सुनहीं-देखहीं रहे होंगे, ऊ दिल्ली इउनिभारसीटी वाले प्रोफ़ेसर साहिब जो बामपंथी आलोचक हुआ करित थे आउर आपन सोध-छात्रा को पोंछिया के ओका जिनगी नरक कर दिहिस रहे, ऊ फेर से बिभिन्न आयोजन का नेवता पा रहिन हैं आ मंच सुसोभित कर रहिन हैं ! बाकिर दिल्ली आ दूसर सब महानगर के जानकार त जानिबे करत हैं कि नयकी पीढी के बामपंथियन में भी केतना सब लम्पट-छिछोर लाल गमछा लपेट के घूम रहा है !

(15अक्‍टूबर,2018)

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