Tuesday, February 13, 2018

इलाहाबाद की बर्बर घटना...



इलाहाबाद की बर्बर घटना... आप अभी भी फासिस्ट बर्बरों के आने के अंदेशे की बात कर रहे हैं ? अरे भाई, वे कभी के आ चुके हैं और अपना खूनी उत्पात लगातार बढ़ाते जा रहे हैं ! मुसलमान और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक, दलित, स्त्रियाँ, आज़ाद ख़याल और तरक्कीपसंद लोग एक-एक करके निशाना बनाये जा रहे हैं I एस.ए.,एस.एस., कू क्लक्स क्लान के गुंडे और गेस्टापो के लोग रात के अँधेरे में ही नहीं, दिन-दहाड़े अपने कारनामों को अंजाम दे रहे हैं I अब तो मान लो कि रथ-यात्रा, बाबरी मस्जिद ध्वंस, ईसाई पादरी और उसके बच्चों की ह्त्या ,गुजरात-2002 और 16 मई,2014 अलग-थलग घटनाएं नहीं बल्कि जुडी हुई कड़ियाँ थीं I संविधान और कानून के सहारे इन फासिस्टों का मुकाबला नहीं किया जा सकता I बुर्जुआ जनवाद की सारी संस्थाएं -- न्यायपालिका, चुनाव आयोग, मीडिया, सी. बी. आई., शिक्षा तंत्र -- सबकुछ उनकी जेब में हैं I तिरंगा की आड़ में भगवा अपना काम कर रहा है I देर हो चुकी है I कायर चुनावी वामपंथियों, कुलीन उच्च-मध्यवर्गीय वाम बुद्धिजीवियों और दिशाहीन क्रांतिकारी वाम धारा के कारण युद्ध के महत्वपूर्ण मोर्चे हारे जा चुके हैं, लेकिन अभी भी, हमारे पास लड़ने के लिए संगठित होने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं है I फासिस्टों से सडकों पर मोर्चा लेने के लिए मेहनतकशों और रेडिकल प्रगतिशील नौजवानों को संगठित करना ही होगा I लड़ेंगे तो जीतने की भी संभावना हो सकती है, अन्यथा कई मोर्चे तो पहले ही हारे जा चुके हैं I आपके पास चारा ही क्या है ! सबसे बुरी स्थिति के बारे में भी यही कहा जा सकता है कि बिना प्रतिरोध किये मारे जाने से बेहतर है कि लड़ते हुए मरा जाए I यह तो मैं worst स्थिति की बात कर रही हूँ, वैसे स्थिति इतनी बुरी भी नहीं है I देश में फासिस्टों की आर्थिक नीतियों और उनके नतीजों के कारण जनता में नफ़रत का ज्वार उमड़-घुमड़ रहा है I ज़रूरत उसे सही दिशा देने की है I हम अपने प्रयासों को एकजुट करेंगे, लेकिन तबतक इंतज़ार मत कीजिये, जहां भी हैं, तृणमूल स्तर पर सक्रिय हो जाइए, सड़क पर उतरिये, फासिज्म के घोर प्रतिक्रियावादी सामाजिक आन्दोलन के मुकाबले एक प्रगतिशील सामाजिक आन्दोलन खडा करने की कोशिश करने के लिए मेहनतकशों की बस्तियों में जाइए और भगत सिंह के सपनों का भारत बनाने के लिए युवाओं का आह्वान कीजिये।

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