Monday, February 19, 2018

कोई तानाशाह यदि योग्य और......




कोई तानाशाह यदि योग्य और शक्तिशाली भी हो, तब भी भय और असुरक्षा-बोध से ग्रस्त रहता है। चमचों और अंध-भक्तों की भीड़ में भी वह अकेला होता है, लगातार लोगों पर संदेह करता रहता है और बचाव और हमले की युक्तियाँ तथा षडयंत्रकारी चालें सोचता रहता है I तानाशाह किसी पर भी भरोसा नहीं करता, अपने ख़ास लोगों पर भी नहीं। और तानाशाह यदि अयोग्य हुआ तो स्थिति और अधिक बदतर होती है। हर निरंकुश या तानाशाह प्रवृत्ति का व्यक्ति किसी हद तक मनोरोगी होता है।
तानाशाह अक्सर अपने भरोसे के लोगों के षडयंत्र का ही शिकार होता है I मगर तब तानाशाह की जगह कोई तानाशाह ही लेता है। तानाशाही की किसी भी व्यवस्था का ताबूत क़ब्र में तो जन-शक्ति ही उतारती है I
जिन समाजों के ताने-बाने में जनवादी मूल्य नहीं होते और जिनमें जनवादी संस्थाएं कमजोर होती हैं, वहाँ तानाशाह, निरंकुश और स्वेच्छाचारी प्रवृत्ति के लोग बहुत पाए जाते हैं I ऐसे समाजों में उम्र, ज्ञान, पद और हैसियत की तानाशाहियाँ खूब चलती हैं। ज्यादातर लोग इनके आदी होते हैं और अपने से कमतर पर तानाशाही करने के मौके तलाशते रहते है।
ऐसे किसी उत्तर-औपनिवेशिक पिछड़े समाज में, जैसेकि भारत में, पूंजीवादी संकट से जब फासिस्ट उभार पैदा हो रहा है, तो उसकी अगुवाई करने के लिए तानाशाह और निरंकुश प्रवृत्ति के लोग थोक भाव से उपलब्ध हैं I आज के दिवालिया, संकटग्रस्त पूंजीवाद की आत्मिक वंचना यह है कि उसे बुर्जुआ जनवाद की रामनामी चादर ओढ़े जो तानाशाह भी मिल रहे हैं वे हास्यास्पद हदों तक घामड़ और कुसंस्कृत हैं I आज के अमेरिका को ट्रम्प से काम चलाना पड़ रहा है तो भगवा भगत फासिस्टों में से जो थोड़े पढ़े-लिखे या थोडा-बहुत भी सभ्य हैं, उन्हें नरेन्द्र मोदी को एक शर्मिन्दगी की तरह झेलना पड़ रहा है।
(18फरवरी,2018)

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