Wednesday, February 14, 2018

अगर तुम अपने आदर्शों और उसूलों के लिए लड़ने....




अगर तुम अपने आदर्शों और उसूलों के लिए लड़ने और हर संभव तकलीफ उठाने के लिए तैयार नहीं हो , तो बिलबिलाओ मत, रोओ-बिसूरो मत, दूसरों को कोसो मत , कायर कुलीन कथित प्रगतिशील बुद्धिजीवियो ! जाओ, बिलों में घुस जाओ ! जाओ, वजीफे, नाम-गिराम और इनामो-इकराम के लिए हत्यारों के महल के बाहर कतार में लग जाओ, दारू की महफिलें जमाओ, एन. सी. आर. के सुरक्षित इलाके में किसी वी.आई.पी. अपार्टमेंट में फ्लैट बुक कराओ। जिओ यार अपनी ज़िन्दगी, टेंशन काय कू लेता ? ये ज्ञापन-प्रतिवेदन-प्रतीकात्मक विरोध काम नहीं आयेंगे। फासिस्टों से सडकों पर भिड़ंत होगी। उससमय भागोगे तो काफी शर्मिन्दगी होगी, पहले ही सटक लो I एक मजेदार वाक़या बता दूं। बरसों पहले एक युवा ज्ञान-प्राप्ति और प्रतिष्ठित बुद्धिजीवी बनने के लालच में भ्रमवश हमलोगों से आ सटा था। फिर हुआ ऐसा कि एक नव-धनिक मीडिया ग्रुप के गुंडों से सड़क पर हमलोगों की ज़बरदस्त भिडंत हुई, सभी लहूलुहान हुए, जेल गए, मुक़द्दमा चला। बुद्धिजीवी बनने का आकांक्षी वह युवा भिडंत-स्थल से, अभिधा में, पैन्ट गीली करते हुए भागा और दृश्य-पटल से तिरोहित हो गया। बरसों बाद, सरकारी अधिकारी होने के साथ ही वह वामपंथी कवि-लेखक भी हो गया। अब मार्क्सवाद पर और कश्मीर पर किताबें लिखता है, लेखकों-कवियों की गोल-गोलैती करता है, कविताएँ लिखता है और हमलोगों के खिलाफ अहर्निश विष-वमन करता रहता है I यह दृष्टांत मैंने क्यों सुनाया ? -- 'समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी है !' आने वाले समय में एक बार फिर प्रगतिशील कवियों-लेखकों को फासिस्टों से और निरंकुश सत्ता से सडकों पर वैसे ही भिड़ंत करनी होगी, जैसे हमारे पुरखों ने --- लोर्का, ब्रेष्ट, काडवेल, नेरूदा, नाजिम हिकमत, रोखे दाल्तोन, अर्नेस्तो कार्देनाल, कास्तिल्लो,न्गूगी, प्रमोद्य अनंत तूर आदि-आदि ने किया था। इसकी तैयारी हो तो मैदान में रहिये, वरना 'स्वैच्छिक अवकाश' लेकर किनारे हो लीजिये।
12 फरवरी,2018

No comments:

Post a Comment