Saturday, September 17, 2016

स्‍मृतियों की जगह




लोर्का एक बार जब कहीं कविता पढ़कर मंच से नीचे उतरे तो एक बूढ़ी देहाती औरत ने उन्‍हें पकड़ लिया। उस औरत ने अपने बटुए से निकालकर एक पीली पुरानी तस्‍वीर दिखाई जो उनके बचपन की थी। उस औरत ने बताया कि उनके पैदा होते समय उनकी अकेली माँ की मदद के लिए वही पास में मौजूद थी। इस घटना की याद लोर्का को हमेशा भावविह्वल कर देती थी।
पाब्‍लो नेरूदा के बचपन की एक याद। उनके घर के पिछवाड़े एक फेंस लगा हुआ था। उस फेंस के एक सूराख से एक दिन एक छोटे से हाथ ने उन्‍हें एक खिलौने वाला मेमना भेंट किया। फिर उन्‍होंने अपना प्‍यारा चीड़ का गुलदस्‍ता उस बच्‍चे को भेंट कर दिया। उपहारों का यह रहस्‍मय विनिमय उनकी याददाश्‍त में गहराई तक पैठ गया और इस घटना से उन्‍हें यह समझने में मदद मिली कि आप यदि मानवता को कुछ भी दें तो बदले में और भी खूबसूरत चीज़ें पायेंगे।
ऐसी छोटी-छोटी घटनाएँ, सम्‍भव है, हमारे-आपके जीवन में भी घटित होती हों। पर हम उन्‍हें बहुत दिनों तक याद नहीं रख पाते। घटनाएँ अपने तात्‍कालिक प्रभाव के अतिरिक्‍त हमारे  लिए कोई मायने नहीं रखतीं। स्‍मृतियाँ अपने नये-नये, गहन निहितार्थ तभी उदघाटित करती हैं, जब हम कोई सार्थक, रचनात्‍मक और जोखिम भरे प्रयोगों वाला जीवन जीते हों, ऐसा जीवन जो लीक से हटकर हो। जब हम वर्तमान में मानवीय सारतत्‍व की उदात्‍तता का संधान करते हुए भविष्‍य की ओर बढ़ते हैं तो स्‍मृतियाँ भी नन्‍हीं बच्चियों की तरह अपनी छोटी-छोटी अंजुलियों में अतीत से ऐसे ही मानवीय क्षणों की आभा और गरिमा बटोर-बटोरकर लाती हैं। जैसे मिट्टी का घरौंदा बनाते बच्‍चे की दूसरे बच्‍चे मदद करते हैं।
जीवन यदि सीधी-सपाट गति से चलता रहता है तो अतीत भी एक वीरान, सपाट पठार नज़र आता है। तब दिमाग महज एक बंजर मैदान होता है और दिल एक दुर्गंध छोड़ता दलदल। स्‍मृतियों को सार्थकता सर्जनात्‍मक वर्तमान से मिलती है। इतिहास की सही अर्थवत्‍ता को भी वही खोज, पहचान और पकड़ पाते हैं, जो उम्‍मीद, हठ और हिम्‍मत के साथ भविष्‍य-निर्माण की परियोजना पर काम करते हैं।

-- कविता कृष्‍णपल्‍लवी

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