Saturday, October 03, 2015

गुजरात के हत्‍यारों और ग़ाज़ा के हत्‍यारों का भाईचारा


-- कविता कृष्‍णपल्‍लवी

हिन्‍दुत्‍ववादी-जायनवादी भाई-भाई
ग़ाज़ा में इस्रायली जायनवादियों के बर्बर नरसंहार को कल एक वर्ष पूरा हो गया। 51 दिनों तक ग़ाज़ा पर जारी रहने वाले इस्रायली हमले में 556 बच्‍चों सहित 2200 लोग मारे गये, 11,500 लोग घायल हुए और 1,08000 लोग बेघर हो गये। एक वर्ष बाद भी ग़ाज़ा इस्रायली घेरेबन्‍दी के बीच नर्क़ बना हुआ है। ज्‍यादातर टूटे हुए घर, स्‍कूल और अस्‍पताल आज भी वैसे ही पड़े हुए हैं। ग़ाज़ावासियों को पीने का साफ़ पानी तक मयस्‍सर नहीं है।
अरब देशों के शेखों, शाहों और अमेरिकी पिटठुओं की बुर्जुआ सरकारों के विश्‍वासघात और दुनिया भर की बुर्जुआ सत्‍ताओं की चुप्‍पी के बीच इस्रायल के जालिम जायनवादियों को अगर कोई चीज़ परेशान कर रही है तो वह है समूची अरब जनता की फिलिस्‍तीनियों के साथ एकजुटता और दुनिया भर के अमनपसन्‍द लोगों द्वारा चलाये जा रहे 'बी.डी.एस. मूवमेण्‍ट' ('बॉयकॉट, डाइवेस्‍टमेण्‍ट ऐण्‍ड सैंक्‍शंस मूवमेण्‍ट') का इस्रायली विदेश व्‍यापार पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव। 'बी.डी.एस. मूवमेण्‍ट' के दबाव के कारण अधिकांश यूरोपीय देशों की सरकारें भी इस्रायल के साथ आर्थिक सम्‍बन्‍धों को ठण्‍डा बनाये हुए हैं।
ऐसे में अमेरिकी साम्राज्‍यवादियों के बाद जायनवादियों की सबसे बड़ी मददगार के रूप में भारत के हिन्‍दुत्‍ववादी फासिस्‍टों की सरकार सामने आयी है। गुजरात-2002 के हत्‍यारे ग़ाज़ा-2014 के हत्‍यारों के साथ मज़बूती के साथ खड़े हैं और ख़ूनी फासिस्‍टों के अन्‍तरराष्‍ट्रीय भाईचारे की एक अद्भुत मि‍साल पेश कर रहे हैं।
आज की तारीख़ में भारत इस्रायली हथियारों और सामरिक तकनीक का सबसे बड़ा ख़रीदार है। इस्रायल रूस के बाद भारत की सामरिक आवश्‍यकताओं का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। रक्षा के अतिरिक्‍त जासूसी मामलों में भी भारत की आई.बी. और 'रॉ' जैसी एजेंसियों का कुख्‍यात इस्रायली एजेंसी 'मोसाद' के साथ घनिष्‍ठ सहकार है। 2013 तक भारत इस्रायल  का दसवाँ सबसे बड़ा व्‍यापार साझीदार बन चुका था और दोनों के बीच द्विपक्षीय व्‍यापार 4.39 अरब डॉलर तक पहुँच चुका था। 2002 में (अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान) भारत ने 4.18 अरब डॉलर के हथियार और रक्षा तकनीक इस्रायल से ख़रीदे। 2012 तक यह राशि 10 अरब डॉलर तक पहुँच गयी थी।
जाहिर है कि भारत के साथ हथियारों, रक्षा तकनीक और अन्‍य चीज़ों के व्‍यापार से इस्रायल की अर्थव्‍यवस्‍था को भारी सहारा मि‍ल रहा है जिसका इस्‍तेमाल जायनवादी 'बी.डी.एस. मूवमेण्‍ट' का प्रभाव कम करने में तथा अपने खूँख्‍वार सैन्‍य तंत्र को मज़बूत बनाने में कर रहे हैं। हाल ही में ग़ाज़ा नरसंहार पर संयुक्‍त राष्‍ट्रसंघ की रिपोर्ट पर सं.रा. मानवाधिकार परिषद  में जब इस्रायल के विरुद्ध निन्‍दा प्रस्‍ताव रखा गया तो केन्‍या, इथियोपिया, पैरागवे और मैसिडोनिया के साथ मतदान से अलग रहने वाला पाँचवाँ देश भारत था। उल्‍लेखनीय है कि यूरोपीय संघ के देशों तक ने इस निन्‍दा प्रस्‍ताव के पक्ष में वोट दिया। प्रस्‍ताव के विरोध में वोट देने वाला एकमात्र देश अमेरिका था। फिलिस्‍तीनी जनता के साथ भारत सर‍कार का यह ऐतिहासिक विश्‍वासघात फासिस्‍टों के अन्‍तरराष्‍ट्रीय भाईचारे की बेशर्म और घृणित बानगी  है। लेकिन हिटलर और मुसोलिनी की जारज संतानों से इसके अतिरिक्‍त भला अपेक्षा भी क्‍या की जा सकती है? 

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