Monday, December 15, 2014

शर्म इनको मगर नहीं आती!




-- कविता कृष्‍णपल्‍लवी

दिल्‍ली में चर्च दहन, उ.प्र. में ''घर वापसी'' के नाम पर प्रलोभन देकर मुसलमानों-ईसाइयों का धर्म परिवर्तन, नाथूराम गोडसे को देशभक्‍त घोषित करना, उ.प्र. के राज्‍यपाल राम नाइक द्वारा अयोध्‍या में राम मंदिर निर्माण का आह्वान, जो ''रामज़ादा'' नहीं उसे ''हरामज़ादा'' बताना, गीता को राष्‍ट्रीय ग्रंथ घोषित करने का आग्रह, श्रम कानूनों में सुधार द्वारा मज़दूरों की हड्डियाँ निचोड़ने की तैयारी, भूमि अधिग्रहण कानून में सुधार द्वारा किसानों-आदिवासियों को उनकी जगह-ज़मीन से दर-बदर करना आसान बनाने की तैयारी, माओवाद उन्‍मूलन के नाम पर आम लोगों पर कसता दमन का लौह शिकंजा, विदेशी लुटेरों के लिए लाल कालीन बिछाना, सार्वजनिक उपक्रमों को कौड़ि‍यों के मोल देशी विदेशी पूँजीपतियों को सौंपा जाना, शिक्षा का भगवाकरण, सेक्‍युलर प्रगतिशील अकादमिक जमातों पर खुला हमला -- और इन सबके बीच छत्‍तीसगढ़ के भाजपाई मुख्‍य मंत्री रमन सिंह रायपुर में राष्‍ट्रीय साहित्‍य महोत्‍सव कर रहे हैं जिसमें कवि नरेश सक्‍सेना, पुरुषोत्‍तम अग्रवाल, अशोक वाजपेयी, प्रयाग शुक्‍ल, अजय तिवारी, अर्चना वर्मा, प्रभात त्रिपाठी, विनोद कुमार शुक्‍ल, रमणीका गुप्‍ता, गीताश्री, अच्‍युतानंद मिश्र, राहुल देव, विनोद शर्मा, मैत्रेयी पुष्‍पा आदि-आदि हिन्‍दी साहित्‍य और पत्रकारिता के ढेरों नामचीन लोग हिस्‍सा ले रहे हैं, ख्‍याति, स्‍थापना, पुरस्‍कार और छपास के अभिलाषी बहुतेरे युवा तुर्कों के साथ। सुना है कि छत्‍तीसगढ़ का पूर्व डी.जी.पी. हत्‍यारा विश्‍वरंजन भी मौजूद है। सचमुच यह बेशर्म अवसरवाद का स्‍वर्णयुग है और हिन्‍दी साहित्‍य का अंधकार युग। यही विश्‍वरंजन है जिसने सलवा जुडुम को बढ़ावा देकर और पुलिसिया तंत्र के द्वारा छत्‍तीसगढ़ के आदिवासियों पर ऐतिहासिक कहर बरपा किया था। उसे कवि रूप में स्‍थापित करने में नामवर सिंह और केदारनाथ सिंह जैसे महा‍महिमों ने कुछ भी नहीं उठा रखा और मुक्तिबोध के नाम पर किये गये उसके आयोजन में किसी ज़माने के अग्निमुखी वामपंथी आलोकधन्‍वा सहित कई नामचीन वामपंथी शामिल हुए थे।
क्‍या ये सभी लोग इतने मासूम या मूर्ख हैं कि रमन सिंह के आयोजन को भाजपा की परियोजनाओं से एकदम काटकर देखते हैं। भाजपा यदि हिन्‍दुत्‍ववादी फासिस्‍ट है तो रमन सिंह क्‍या हैं? छत्‍तीसगढ़ में किसकी सरकार के हाथ सैकड़ों बेगुनाहों के खून से रंगे हैं? ये कौन लोग हैं जो चेहरों पर मासूमियत, और जनपक्षधरता का मुखौटा चढ़ाये हुए हत्‍यारों की परियोजनाओं को सफल बनाने का काम कर रहे हैं और उनके रक्‍तरंजित हाथों पर रेशमी दस्‍ताने पहना रहे हैं? दरअसल ये लोग समझ रहे हैं कि अवसरवादी दुचित्‍तेपन का यह ज़माना यूँ ही चलता रहेगा और वे सत्‍ता का चारणगान भी करते रहेंगे और जनता का आदमी भी बने रहेंगे। लेकिन इनका अपराध कभी भी भुलाया नहीं जा सकेगा। वह समय आयेगा जब ये लोग भव्‍य कला संस्‍कृति प्रतिष्‍ठानों से रेवड़ों की तरह हाँककर सड़क पर लाये जायेंगे और दोनों ओर खड़ी जनता इनपर इसकदर थूक की बारिश करेगी कि इनकी तबीयत हरी हो जायेगी।

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