Monday, October 27, 2014

भारत में प्रेम करने के बारे में कुछ बातें




-- कविता कृष्‍णपल्‍लवी

प्रेम करने की आजादी निजता की हिफाजत के हक़ और व्‍यक्तिगत आजादी का सबसे महत्‍वपूर्ण मुद्दा है। इस रूप में इस आजादी के लिए डटकर लड़ना और रूढ़ि‍वादी शक्तियों एवं ''संस्‍कृति'' के ठेकेदारों से मोर्चा लेना हर जिम्‍मेदार, प्रबुद्ध नागरिक का एक बुनियादी दायित्‍व है।
प्रेम के सामाजिक-ऐतिहासिक और नैतिक पक्ष से अनभिज्ञ प्रेमियों का प्रेम मध्‍यवर्गीय रूमानियत से सराबोर होता है और सहज सान्निध्‍य-प्रसूत यौनाकर्षण उसका मुख्‍य पहलू होता है। इसलिए वे प्रेम का पवित्र कार्य करते हुए भी ज़माने से डरते हैं। उनका अलगावग्रस्‍त दिलो-दिमाग इस एकान्तिक क्रिया व्‍यापार के अधिकार के लिए लड़ने हेतु सामूहिक एकजुटता की ज़रूरत को समझ ही नही पाता। जीवन के अन्‍य क्षेत्रों में रूढ़ि‍यों के साथ समझौता करने वाले प्रेमीजन प्रेम के मामले में रूढ़ि‍यों से डटकर मोर्चा लेने का साहस ही नहीं जुटा पाते।
पार्कों में बैठे जोड़ों पर जब दक्षिणपंथी गुण्‍डे हमला बोलते हैं और दौड़ाते हैं तो प्रेमियों को भागते, मुँह छिपाते, कान पकड़कर उट्ठक-बैठक करते देखकर बड़ी कोफ्त होती है। ऐसे सभी जोड़े ढेले और डण्‍डे लेकर, या खाली हाथ ही, एक साथ मिलकर ''भारतीय संस्‍कृति के ठेकेदार'' गुण्‍डों के गिरोहों से भिड़ क्‍यों नहीं जाते? जो प्रेम करने की निजी आजादी के लिए जान देना तो दूर, हाथ-पैर तुड़ाने का भी जोखिम नहीं मोल ले सकते, उन्‍हें प्रेम करना ही नहीं चाहिए।
हम किसी जाति-धर्म के व्‍यक्ति से प्रेम करें, 'सिंगल' रहें, विवाह करें या 'लिव इन' में रहें, इसमें राज्‍य या सामाजिक-सामुदायिक संस्‍थाओं का दखल एकदम असहनीय है। युवाओं को तमाम रूढ़ि‍यों और वर्जनाओं को तोड़कर, अपनी निजी आजादी के भरपूर अहसास के साथ अपनी निजी जिन्‍दगी का हर फैसला खुद लेने का सा‍हस जुटाना ही होगा। उन्‍हें एकजुट होकर रूढ़ि‍वादियों, खाप चौधरियों और धार्मिक पोंगापंथियों से मोर्चा लेना ही होगा। आधुनिकता वेशभूषा और नयी-नयी उपभोक्‍ता सामग्रियों और तकनीकों के इस्‍तेमाल का नाम नहीं है। सच्‍चे अर्थों में आधुनिक वही है जो तर्कणा और वैज्ञानिक दृष्टि से लैस है और जिसकी दिमागी बनावट-बुनावट जनवादी है। जो वास्‍तव में आधुनिक भी नहीं, वह प्रगतिशील या वामपंथी  भला कैसे हो सकता है?

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